Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-351



श्रीधर स्वामी  कहते है - यहाँ यशोदाजी की थोड़ी भूल है। कन्हैया के पीछे  दौड़ते समय यशोदाजी की दृष्टि
कन्हैया की पीठ पर थी,उनकी दृष्टि कन्हैया  के मुखारविंद या चरण में नहीं थी। इसलिए वह हाथ में नहींआया।
ऐसा कहा गया है कि लाला की पीठ से अधर्म उत्पन्न हुआ है। भगवान को पकड़ना हो तो उसके सन्मुख दौड़ो। लालाको पकड़ना हो तो -उसके चरण या मुखारविंद में नज़र रखो।

भक्ति भी धर्म की मर्यादा में रखकर करनी चाहिए। भक्ति धर्मानुकूल होनी चाहिए।
भक्ति में अधर्म आया नहीं कि वह भ्रष्ट हो गई। कर्ता (ईश्वर) ने जो कर्तव्य दिया है उसे बराबर निभाना चाहिए।  
जो अपना कर्तव्य,धर्म छोड़ता है उसकी भक्ति सफल नहीं होती।

वल्लभाचार्य कहते है -भगवानको अभिमान से पकड़ने जाओ तो भगवान हाथ में नहीं आते।
यशोदाजी हाथ में लकड़ी  लेकर अभिमान से लाला को पकड़ने गई इसलिए भगवान पकड़ में नहीं आये।
माँ के अंदर सूक्ष्म अभिमान है कि मै माँ हूँ,और यह मेरा बेटा है। इसलिए लाला को पकड़ नहीं पाती।

सत्कर्म करने के बाद यदि आंतरिक अभिमान बढ़ता जाए तो वह सत्कर्म किस काम का?
भगवान सभी दोषों को क्षमा करते है किन्तु अभिमान को नहीं। अभिमान होने से भगवान की उपेक्षा होती है।

अभिमान करने जैसा अपने पास कुछ है ही नहीं फिर भी मनुष्य के पास थोड़े पैसे आ जाने से उसमे अभिमान आ जाता है। राजा को रंक बनते,रंक  को राजा बनते,लाख को खाक होते हुए देर नहीं होती। अभी तो बहुत सा वैभव है और कुछ ही क्षणों में “अच्युतम केशवम” भी हो जाता है। फिर भी हम अभिमान क्यों करते है ?

यशोदाजी लाला के पीछे दौड़ते-दौड़ते थक गई। लकड़ी को भी एक तरफ रखी।
कन्हैया यहीं चाहता था कि माँ लकड़ी-अभिमान छोड़ दे।
माँ ने लकड़ी रख दी तो कन्हैया न केवल रुक गया अपितु वापस पासमें  आने लगा।
यशोदाजी ने कन्हैया का मुख्य देखा। मुख-दर्शन होते ही लाला पकड़ा गया। लाला के मुख में धर्म  निहित है।

आज यशोदाजी लाला को डाँटती है -आज तुझे ओखली के साथ बांधूंगी,जिससे तुझे याद रहे कि  माखन की चोरी  करूँगा तो मुझे बांधा जायेगा। कन्हैया रोने लगा तो माँ ने कहा ,मुझे खबर है कि तू झूठ-मूठ रो रहा है।

बाल मित्रों को दुःख हुआ कि लाला पकड़ा गया है। सदा हँसता हुआ लाला आज रो रहा है।
वे सब यशोदाजी के पास आए और कहा -माँ तू लाला को मत बाँधना। लाला ने चोरी की है पर कुछ नहीं खाया।
सब माखन हमे खिलाया है। आपको को सज़ा देनी है वह हमे दे,पर लाला को मत बांध।
माँ हमारा कन्हैया बहुत कोमल है।

सभी बालक यशोदाजी को विनती करते हुए रो रहे है। यशोदाजी से लाला और उसके मित्रों के आँसू देखे नहीं गए और ह्रदय पिघला है। एक विचार आया कि लाला को बाँधू वह ठीक नहीं है। वह हम सबको प्यारा है।

पर तुरंत ही दूसरा विचार आया कि- मै क्या करू? लाला को चोरी करने की आदत पड़ी है। ये आदत मुझे छुड़ानी है। मै उसकी माँ हूँ। अगर मैंने नहीं छुड़ाई तो कौन छुड़ाएगा? लाला को एक दो घंटे बांधूंगी फिर छोड़ दूँगी।

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