Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-352



यशोदाजी ने अंत में निश्चय किया कि आज तो लाला को मैं  बांधूंगी।
और यशोदाजी लाला को मूसल के साथ बांधने लगी।
उधर सभी बालक दौड़ते हुए अपने घर गए और अपनी-अपनी माँ से कहने लगे,
माँ यशोदाजी कन्हैया को बांध रही है।

सभी गोपियाँ दौड़ती हुई यशोदाजी के पास आई और कहने लगी-
माँ जब आपके  पुत्र नहीं था तब आप पुत्र के लिए तरस रही थी,और आज उसे बाँधकर मारने चली हो।
हम गरीब है। लाला हमारे यहाँ आकर रोज  माखन खाता है मटकी फोड़ता है फिर भी हमने कभी उसे बांधने का नहीं सोचा। कन्हैया हमारा भी है, हमे प्राणों से प्यारा है। उसे मत बांध। तुम उसे छोड़ दो।

किन्तु यशोदाजी आज आवेश में है और गोपियों को कहने लगी -तुमने लाला को बहुत लाड करके बिगाड़ दिया है। मुझे उसकी आदत सुधारनी है। बेटा मेरा है,मै उसे जो चाहे वह करुँगी। तुम बीच  में मत बोलो।

शुकदेवजी वर्णन करते है -राजन, काल के भी काल परमात्मा श्रीकृष्ण आज माँ के क्रोध से काँप रहे है।
आँखों से आँसू निकल रहे है। बालकों और गोपियोंकी भी वही  हालत है।

यशोदाजी बालकृष्ण को मूसल से बांधने लगी। अब अचरज की बात यह  हुई कि
उन्होंने जितनी दोरियाँ आजमायी किन्तु सब दो ऊँगली छोटी निकली।
एक दूसरे से जोड़ती गई तो भी दो ऊँगली छोटी ही रहती थी।
गोपियाँ कहने लगी,माँ,चाहे कुछ भी कहे किन्तु लाला के भाग्य में बंधन लिखा ही नहीं है।
वह तो हम सबको सांसारिक बंधन से छुड़ाने के लिए ही आया है।

कई महात्मा कहते है कि दोरी ने  श्रीकृष्ण को स्पर्श किया इसलिए दोरी  का स्वभाव बदला है। उसका बांधने का स्वभाव चला गया है। दोरी को श्रीकृष्ण के कोमल अंग की दया आई है। दया के कारण दोरी कृष्ण को नहीं बांधती।

भक्तजन कहते है -दोरी में परमात्मा की ऐश्वर्य शक्ति ने प्रवेश किया है।
ईश्वर जहाँ जाये वहाँ ऐश्वर्य शक्ति साथ आती है।ऐश्वर्य शक्ति परमात्मा को स्वामी मानती है।  
यशोदा की वात्सल्य भक्ति है। “मेरा बेटा है,मै उसे बांधूंगी”
ऐश्वर्य शक्ति कहती है कि मेरे प्रभु को मै बांधने नहीं दूँगी। ऐश्वर्य और वात्सल्य शक्ति का यह मीठा झगड़ा है।

प्रभु ने ऐश्वर्यशक्ति से कहा,मै यहाँ गोकुल में ईश्वर नहीं,मात्र यशोदा का बेटा हूँ। मै द्वारिकामें तेरा पति होकर आऊँगा। तू चली जा। माँ को बाँधने की इच्छा है तो उसे बाँधने दे।
गोकुल में प्रेमका प्राधान्य है और द्वारिका में ऐश्वर्य का।

घर में जितनी दोरी थी सब खत्म हो गयी। फिर भी कन्हैया बंध नहीं पाया। यशोदाजी आश्चर्य में डूब गई
और गोपियाँ हास्य में। गोपियाँ मानो कह रही थी कि क्या इस तरह कभी भगवान बंधते भी है?

भगवान कह रहे है - हमारे बीच मात्र दो ऊँगली का अंतर है। ये दो उँगलियाँ है- अहम् और ममता।

जिसके मन में अहम् और ममता शेष है,वह मुझे बाँध नहीं सकता। गीता में कहा है -”निर्मान मोहा जितसंग दोषा” जो निर्मान (अहम बिना का)और निर्मोह (आसक्ति बिना का) है वही मुझे बाँध सकता है।

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