Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-353



श्रीकृष्ण ने देखा कि माँ थक कर पसीना-पसीना हो गई है। तो दयावश होकर माताके बँधन में बंध  गए।
ईश्वर कृपा न करे तब तक जीव ईश्वर को बाँध नहीं सकता। शुध्ध प्रेमलक्षणा भक्ति भगवान को बांधती है।
ज्ञान और योग  प्रभु को बाँध नहीं सकते। लाला की यह दामोदर लीला है।

ईश्वर को उनके पेट पर से बाँधा गया सो उनका नाम दामोदर पड गया।
इस लीला का तात्पर्य है कि -ईश्वर मात्र प्रेम से वश में होते है और कृपा करते है।
जब तक परमात्मा को प्रेम से बांधा न जाए,तब तक संसार का बंधन बना रहता है।
जो ईश्वर को बाँध  सकोगे तो जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा होगा।
जो ईश्वर को बाँध सकता है वह स्वयं छूट जाता है।

ईश्वर सर्वश्रेष्ठ क्यों है? कारण यह है कि वे अपना कोई आग्रह आय ममता नहीं रखते।
जिव आग्रही होता है,ईश्वर अनाग्रही।
जिव दुराग्रही है,अपनी जिद्द नहीं छोड़ता। जीव यदि अनाग्रही बन सके तो वह ईश्वर बन सकता है।
भगवान अपने भक्तों के आग्रह के आगे झुक जाते है। भक्तों के आग्रह का वे आदर करते है।
जीव अपना आग्रह गले से चिपकाए रखता है।

भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के हेतु,श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा भंग करके शस्त्र धारण किये थे।
तब भीष्म पितामह ने अपने शस्त्र फ़ेंक दिए और बोले -
"वाह प्रभु,मेरी प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग  की।"

पूर्ण प्रेम के बिना परमात्मा बंध नहीं पाते। मनुष्य का प्रेम कई हिस्सों में बंटा हुआ है।
थोड़ा घर में,थोड़ा धन में,थोड़ा पत्नी में,थोड़ा संतानो में......
यदि वह  सारा प्रेम लालाजीको अर्पण किया जाए तब जाकर तुम उन्हें बाँध पाओगे।

तुलसीदासजी ने भी कहा है -
“जननी जनक बन्धु सुत धरा,तनु धनु भवन सुहृद परिवार,
सबके ममता बैग बटोरी,मम पद मनहि बांध करि डोरी।”
माता,पिता,बन्धु,,पुत्र,पत्नी,शरीर ,धन,मकान,स्नेही,कुटुम्बीजन-सभी में जो ममता है
वह सब  इकठ्ठी कर उसकी एक डोरी बनाकर प्रभु के चरणमें बांध दो तभी प्रभु को बांध सकोगे।  

जब जीव -दूसरे जीव के साथ प्रेम करे तो एक दिन वह रुलाता है। इसलिए संसारके साथ विवेकके साथ प्रेम करो। लालाजी यहाँ बताते है -अगर अन्य में प्रेम और ममता रखोगे तो हम दोनों के बीच दो ऊँगली का अन्तर रहेगा। तुम मुझे पा नहीं सकोगे।

श्रीकृष्णको यशोदाजी के वात्सल्यभाव पर दया आई है। लालाजी ने सोचा-अगर माँ को मुझे बांधनेमें आनंद आता है तो भले मुझे बाँधे। बालकृष्ण बंध गए और यशोदा की इच्छा पूरी हुई।

हमे भी लालाजी को ह्रदय में बांधकर रखना है। भक्त और महात्मा लाला को ह्रदय मंदिर में बांध कर रखते है। इसलिए परमात्मा उनके वश में रहते है। प्रेम का बंधन परमात्मा नहीं तोड़ सकते।

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