Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-354



सूरदासजी ने भी लालाजी को प्रेम से कीर्तन करके हृदय में बंद किया था। ऐसा कहा गया है कि सूरदासजी जब कीर्तन करते तब बालकृष्ण आकर सुनते थे। सूरदासजी के इष्टदेव बालकृष्णलाल है।

एक बार सूरदासजी चलते-चलते गढ्ढे में फिसल पड़े।  बाहर कैसे निकले? उन्होंने श्रीकृष्ण का स्मरण किया।
श्रीकृष्णने गोप बालक का रूप धारण कर उनको हाथ पकड़कर बाहर निकाला।
श्रीकृष्ण के कोमल हस्त-स्पर्श से उन्हें लगा कि यह साक्षात् भगवान होने चाहिए।
उन्होंने पूछा-आप कौन हो? श्रीकृष्ण ने कहा -मै नन्द गाँव का गोवाल हूँ। और उनका हाथ छोड़कर भागने लगे। सूरदास को पता चल गया कि यह तो साक्षात् भगवान है।
सूरदास ने कहा - मुझे छोड़के मत  जाओ। मै अज्ञानी जीव हूँ। फिर भी,जब श्रीकृष्णने फिरसे हाथ नहीं पकड़ा।

तब सूरदासजी बोले -
“हाथ छुड़ाके जात हो,निर्बल जानि  के मोहि,
जब ह्रदय से जाहुगे,सबल कहौगो तोहि”
मै निर्बल अंध हूँ,और फिर से तेरा हाथ पकड़ नहीं सकता,इसलिए आप हाथ छोड़कर भाग रहे हो,
किन्तु मेरे ह्रदय से भाग निकलो तो जानू। मैंने अपने ह्रदय तुम्हे बन्द कर लिया है।

दामोदर लीला के वर्णन में महाप्रभुजी पागल से हो गए है।
वे कहते है कि ज्ञान और तप पर भक्तिकी विजय की यह कथा है।

लाला को बांधकर यशोदाजी रसोईघर में गई किन्तु उनका मन तो लाला में ही था।
कन्हैया को बांधकर मैंने यह अच्छा नहीं किया है। पर क्या करू? लाला को चोरी की आदत पड़  गई है।
एक-दो घंटे बांधकर उसे छोड़ दूँगी। फिर उसे मनाकर खिलाऊँगी तो लाला सब भूल जायेगा।
यह सोचकर वे रसोईघरके काममें लग गई।

लाला बंधन में है सो सभी बालक वहीं बैठे है।
लाला हमारे कारण तुम्हे बंधना पड़ा। तुम्हे कहीं पीड़ा तो नहीं हो रही है? माँ तुम्हे कब छोड़ेगी।
कन्हैया ने कहा -मुझे कोई दुःख नहीं होता। मै तो परिहास कर रहा हूँ।
जिस प्रकार भक्त प्रभु को दुःख न होने देने के लिए सावधान रहते है,
उसी प्रकार प्रभु भी वैष्णव को दुःखी ने होने के लिए सावधान रहते है।

श्रीकृष्ण ने बालमित्रों से कहा -आज मुझे बैलगाड़ीकी लीला करनी है।
बालमित्रों ने पूछा -यह बैलगाड़ी की लीला क्या है?
लाला ने कहा कि मै बैल बनू और मूसल गाड़ी।  इस मूसलको बैलगाड़ीकी भाँति खीँचूँगा।
लाला उसे खींचने लगा।
दामोदर -श्रीकृष्ण ने सोचा कि मै बंधन में आऊँगा पर अनेक जीवों को बंधन में से मुक्त कराऊंगा।
लाला मूसल को खींचता हुआ उन दो यमलार्जुन वृक्षों के बीच से आगे बढ़ा। मूसल दो वृक्षों के बीच  में टेढ़ा हो गया। लाला ने डोरको इतना जोर से खींचा कि मूसल ने उन दोनों वृक्षों को उखाड़कर गिरा दिया।

यमलार्जुन वृक्ष गिरते ही दो तेजस्वी पुरुष प्रकट हुए।
ये पुरुष अपने पूर्व जन्म में राजा कुबेर के पुत्र -नलकुबेर और मणिग्रीव।
इन दो लक्ष्मीनंदन यक्षों को नारदजी के शाप के कारण वृक्षों का अवतार लेना पड़ा था।

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