Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-355



परीक्षित ने पूछा -नारदजी ने उन्हें शाप क्यों दिया था?
शुकदेवजी बोले- नारदजी ने क्रोध से नहीं बल्कि कृपापूर्वक उन्हें शाप दिया था।

नलकुबेर और मणिग्रीव कुबेर के पुत्र थे। पिता की अपार संपत्ति उन्हें मिली थी।
संपत्ति के अतिरेक होने से दोनों पुत्र सुध-बुध खो बैठे थे।
मदिरापान करके गंगा किनारे आये और गंगा के पवित्र जल में युवती और स्त्रियों के साथ
नग्नावस्था में जलक्रीड़ा करने लगे।
महाप्रभुजी ने बड़े दुःख से कहा है-जब से  विलासी लोग तीर्थ में बसने लगे है,तब से देवगण तीर्थ से विदा हो गए है।

देवर्षि नारद वहाँ से जा रहे थे और उनको ऐसा दृश्य देखकर खूब दुःख हुआ।
नारदजी को देखकर भी उन्होंने अपने शरीर को नहीं ढँका।
नारदजी ने सोचा कि इतना सुन्दर शरीर मिला है फिर भी ये उसका दुरूपयोग कर रहे है।
यह शरीर भगवान का है,उनकी सेवा करने के लिए ही दिया गया है।
नारदजी कहते है,इस शरीर की अंत में क्या दशा होगी?
या तो पशु-पक्षी खा जायेंगे या फिर यह खाक का ढेर बन जायेगा।

जैसे,सौ रूपये की नोट यदि फट जाए और तेल का दाग लग गया हो
किन्तु उसका नंबर ठीक तरह से दिखता हो उसे कोई फ़ेंक नहीं देता।
इसी प्रकार यह शरीर मैला होने पर भी उसका नंबर तो ठीक ही रहता है।
इसी शरीर से भजन और नामजप का आनंद मनुष्य को मिलता है। पशु-पक्षी नामजप नहीं कर सकते।
उन्हें तो अपने शरीर का भी ज्ञात नहीं है तो वे भगवान् को कैसे जान सके।

इस अनित्य शरीर से नित्य प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है।
यह शरीर परमात्मा के कार्य के लिए है,प्रभु की कृपा से मिला है,
फिर भी मदान्ध लोग इस बात को याद रखते नहीं  और भूल जाते है।
उन कुबेर-पुत्रों की हीं दशा देखकर नारदजी को दया आयी।
उनको सन्मार्ग पर ले जाने के लिए नारदजी ने  नलकुबेर और मणिग्रीवको शाप दिया।

सुनते ही नलकुबेर और मणिग्रीव पछताने लगे। वह नारदजी के शरण में आकर क्षमा मांगने लगे।
नारदजी ने कृपा करके उन दोनों को गोकुल में वृक्षावतार दिया।
नंदबाबा के आँगन में तुम दोनों का जन्म होगा और कन्हैया के चरण-स्पर्श से तुम्हारा उध्धार होगा।

उध्धव जैसे महापुरुष भी वृंदावन में वृक्ष के रूप में जन्म लेना चाहते है।
इसलिए नारदजी का यह शाप  नहीं पर पर आशीर्वाद ही है।
नलकुबेर और मणिग्रीव का नंदबाबा के आँगन में वृक्ष के रूप में अवतार हुआ।
श्रीकृष्ण के स्पर्श होने से दोनों पुरुष बाहर आये है। श्रीकृष्ण ने उनका उध्धार किया है।

वृक्ष गिरने का धमाका सुनकर गोपियाँ दौड़कर आई है। अच्छा हुआ भगवान की दया से कन्हैया बच गया।
नंदबाबा भी दौड़ते हुए आये है। उन्होंने देखा कि कन्हैया मूसल के साथ बंधा हुआ है। उनके आँखों में आँसू आये है। उन्होंने लाला को बंधनमुक्त किया है।  

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