Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-358



शुकदेवजी वर्णन करते है -
कई बार गोपियाँ यशोदा के घर आकर लालाको ले जाने को कहती है। कन्हैया तू मेरे घर आएगा?
तो कन्हैया पूछता है -मै तुम्हारे घर आऊँगा तो तुम मुझे क्या दोगी? गोपियों ने कहा - माखन।
लाला ने पूछा -कितना माखन दोगी? गोपियों न पूछा - तुझे कितना माखन चाहिए?
लाला ने दोनों हाथ फैलाकर बताया -इतना। तो गोपियों ने पूछा-इतना सारा माखन तू खा सकेगा?

कन्हैया ने कहा -मुझे नहीं खाना। मै सब अपने मित्रों को खिलाऊँगा। ईश्वर औरो को खिलाकर प्रसन्न होते है।
खानेसे जो आनंद मिलता है उससे ज्यादा आनंद औरों को खिलानेसे मिलता है।

मन माखन जैसा कोमल हो और जीवन मिश्री-सा मधुर,बने तो कन्हैया अवश्य आएगा।
गोपी ने सोचा,इसे माखन दूँगी तो वह उसे लेकर तुरन्त चला जाएगा। मुझे लाला के साथ बातें करनी है।
उसने लाला से कहा कि अगर माखन चाहिए तो मेरा  काम भी करना पड़ेगा। कन्हैया ने पूछा-क्या काम करू?
गोपी ने कहा -जा वह  पाट ले आ। “माखन मिलेगा तो मित्रों को खिलाऊँगा।” इस आशा से वह पाट लेने गया।
पाट थोड़ा भारी था सो हाथ से गिर  गया और साथ में कन्हैया का पीताम्बर भी छूट गया।
(गोपिओं को निरावरण ब्रह्म के दर्शन होते है!!)

अब गोपी ने कहा -लाला तू थोड़ा नाच,फिर मै तुझे माखन दूँगी। माखन की लालच में कन्हैया अब नाचने लगा।
जगत को नचाने वाला नटवर,गोपी के प्रेम में वशीभूत होकर स्वयं नाच रहा है।

वेदांत का एक सिध्धांत है -ब्रह्मज्ञान प्राप्त होने के बाद भी अविद्याका अंश बाकी  रह जाता है
क्योंकि प्रारब्ध कर्म तो भुगतना ही पड़ता है। ब्रह्मज्ञान से प्रारब्ध कर्म का नाश नहीं होता।
ब्रह्मज्ञान से क्रियमाण और संचित कर्मो का नाश होता है। प्रारब्ध कर्म के भुगतने के बाद ही उसका नाश होता है। ज्ञानी को ब्रह्म-साक्षात्कार होने पर अविद्या का अंश  बाकी रह जाता है और कुछ आवरण के साथ ब्रह्मका
(परमात्माका) साक्षात्कार होता है। किन्तु इन व्रज भक्तों को तो अनावृत श्रीकृष्ण (परमात्मा) के दर्शन होते है।

कवि रसखान कहते है -
"नारद से शुक वॉयस रटै पचि हारे तउ पुनि पार न पावै।
ताहि आहिर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावै।"

नारद और शुकदेव,हर वक्त परमात्मा का नाम रटते है,फिर भी उनकी महिमाको पा नहीं शकते है-
जबकि-थोडासा माखन और छाछ के लिए -गोपिओ परमात्मा से काम करवाती है-उसे नचाती है।
और,गोपियोंसे मात्र  प्रेम से बंधे हुए श्रीकृष्ण उनके घरों में काम भी,करते है।
उनके सिर पर पानी की गगरियाँ चढ़ाते है,पाट लाते है,और उनके मनोरंजन के लिए नाचते भी है।

व्रज की इस लीला में केवल प्रेम का भाव है। इसमें ज्ञान-वैराग्य नहीं है।
दामोदर लीला के बाद अब मालन का प्रसंग आता है। भागवत में एक-दो श्लोक में इसकी कथा है।
पर वृन्दावन के महात्माओं ने  इस पर खूब विचार किए है।

व्रज में एक सुखिया नाम की मालन थी,जो रोज गोपियों के घर फूल -तुलसी देने जाती।
गोपियों के घर सिर्फ श्रीकृष्ण की बाते होती जो मालन रोज सुनती।

रोज कथा श्रवण से मालन के ह्रदय में  श्रीकृष्ण के प्रति  प्रेम जागा है।  उनकी भक्ति व्यसन सी हो गई थी।

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