मुझे उसके दर्शन करने है। उसे कृष्ण दर्शन की इच्छा हुई है।
लाला के दर्शन करने वह रोज नंदबाबा के घर आकर खड़ी रहती। किन्तु कन्हैया बाहर नहीं निकलता।
जीव जब पूर्णतः निष्काम और वासनाहीन बनता है,तभी प्रभु दर्शन देते है।
मालन के मन में लौकिक वासना रह गई है इसलिए कन्हैया दर्शन नहीं देता।
मालन भूदेव के पास गई और कृष्ण दर्शन का उपाय पूछने लगी-मुझे कृष्ण दर्शन की लालसा है,
पर मेरे पाप ऐसे है कि जब भी दर्शन करने जाती हूँ कन्हैया बाहर नहीं आता।
आप ही कुछ उपाय बताओ जो मै कन्हैया के दर्शन कर सकू।
भूदेव ने कहा -घर में बालकृष्ण की सेवा,अथवा रोज २१००० जप कर।
मालन ने कहा -सेवा तो मै नहीं कर सकती। हम गरीब है और मेरी ऐसी स्थिति नहीं है कि एक आसन पर बैठकर जप कर सकु। अंत में भूदेव ने उपाय बताया -यदि तू कुछ भी न कर सके तो नंदबाबा के घर की हर रोज १०८ प्रदक्षिणा कर। “हरे राम हरे कृष्ण मंत्र का जप करना।” एक दिन कन्हैया जरूर दया करेगा।
मालन नियमानुसार हररोज़ १०८ प्रदक्षिणा करती है,और परमात्मा को मनाती है।
कृष्ण विरह अब असह्य हो गया है।
आज उसने निश्चय किया है,जब तक कन्हैया के दर्शन न करू तब तक नंदबाबा के आँगन से नहीं हटूंगी।
आज वह सिर पर फल की टोकरी लेकर आई है,और चिल्ला रही है फल लो -फल लो।
वह सोचती है कि शायद फल लेने के बहाने कन्हैया बाहर आये।
प्रभु ने सोचा कि यह जीव अभी लायक नहीं हुआ है पर मुझे बहुत याद कर रहा है सो आज उसे दर्शन देने होंगे। लाला ने चरण में नूपुर पहने है। छुम -छुम करता बाहर आया है।
दोने हाथ आगे करते हुए मालन से कहा -मुझे फल दो।
जगत को उनके कर्मो के फल देने वाला आज फल माँग रहा है।
लाला के दर्शन करने के बाद मालन को लाला के साथ बात करने की इच्छा हुई है।
अपने दुःख कहने की इच्छा है। मालन के सन्तान नहीं था।
उसकी इच्छा थी कि लाला उसकी गोद में आकर बैठे और उसे माँ कहकर पुकारे।
वह लाला को अपनी गरीबी की बात करना चाहती थी।
मालन ने बड़े दुःख से लाला को कहा -मै यहाँ फल देने नहीं परन्तु फल बेचने आई हूँ। प्रभु सब समझ गए।
तुरन्त घर में जाकर दो मुठ्ठी चावल लेकर आये और मालन की टोकरी में डाल दिए।
मालन ने लाला से कहा -लाला मै तुझे अपने दुःख की बात कहना चाहती हूँ।
क्या तुम मेरी गोद में बैठकर मुझे एक बार माँ कहोगे?
लाला समझ गया। जाकर मालन की गोद में बैठ गया और कहा माँ मुझे फल दो।
हजारो वर्षो का विरही जीव आज ईश्वर से मिला है।
घर आकर मालन ने देखा तो टोकरी रत्नों से भरी थी। उसे सुखद आश्चर्य हुआ,सोचने लगी कि मेरे जन्म-जन्मांतरका दारिद्र दूर हुआ है। मालन जीव है। जीव के पास परमात्मा सत्कर्म का फल मांगते है और जीव अगर उस फल को अर्पण करे तो परमात्मा कई गुना बढाकर वापस देते है।