Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-362



पाप और साँप  एक  समान है।
साप के काटने से शरीर के उस अंग अथवा ऊँगली को काट दिया जाता है जिससे उसका विष सारे शरीर में
फैल नहीं पाएगा। इसी प्रकार पाप का विचार आते ही उसे उसी क्षण नष्ट कर दोगे तो बच पाओगे।
साँप के विष की भाँति यदि पाप  कुछ समय के लिए अंदर रह जाएगा तो फिर बचना मुश्किल हो जाएगा।

पाप हो या पुण्य,पर उसका फल भुगते बिना उसका नाश नहीं होता। पुण्य भोगने ले लिए जन्म लेना पड़ता है। इसलिए साधु-सन्त भी पुण्य का कृष्णार्पण करते है। उसके बाद उन्हें फिर जन्म लेना नहीं पड़ता।
पुण्य कृष्णार्पण किया जा सकता है,पाप नहीं। पाप का दंड तो स्वयं ही भुगतना पड़ता है।
किसी साधु-संत,महापुरुष या सुपात्र की कृपा होने पर ही पाप की वासना नष्ट हो सकती है।

अधासुर के पेट मे से गोपबालक बाहरआए। वे कन्हैया से कहने लगे -तू सांपको मारता है पर हमारी भूख
नहीं मारता। हमे भूख लगी है। लाला ने मित्रों से कहा -चलो,हम यमिना किनारे जाकर भोजन करते है।
ये बछड़े भले यहाँ घास चरे। लाला मित्रों के साथ भोजन करने बैठा है।

कन्हैया और सभी बालक एक साथ मिलकर पद्मव्यूह-चक्रव्यूह रचकर भोजन करने बैठे है। यह समाधि भाषा है। हजार पंखुरी वाले  कमल में पंखुरियाँ बिलकुल पास-पास और एक दूसरे से लगकर होती है। कमल के मध्य में कोमल पदार्थ होता है और छोटी पंखुरियाँ वहाँ होती है। बड़ी पंखरियाँ छोटी से लगकर होती है।
उसी तरह छोटे बालक कृष्ण के पास और बड़े थोड़े दूर कृष्ण को घेर कर बैठे है। सभी बालक कन्हैया को
खिलाना चाहते है। कृष्ण ने बीचोबीच बैठकर सभी बालको की इच्छा पूरी की। सभी को स्पर्श का आनंद दिया।
ब्रह्म स्पर्श बिना आनंद नहीं मिलता। इस लीला में मानो गोवाल-मित्रों के साथ रास है,रासलीला है।

परम परमात्मा यज्ञ का भोक्ता है। यज्ञ में आहवान करने पर भी कई बार परमेश्वर भोजन नहीं करते। वहीं  आज गोपबालको के हाथों भोजन कर रहे है। इन बालकों का प्रेम ऐसा है कि सबसे अच्छी चीज  कन्हैया को देते है और खराब अपने लिए रखते है।

उत्तम वस्तु  भगवानको अर्पण करनी वह भक्ति है।  
परमात्मा को वश में करने का सर्वोत्तम साधन  है प्रेम। भगवान को उत्तमोत्तम वस्तु दी जाये और वह है भक्ति। भक्ति ही शुध्ध प्रेम भाव है।

एक गोपबालक ने कन्हैया से कहा -मेरी माँ ने तेरे लिए जलेबी बनाई है। मेरी माँ को पता है कि तुझे जलेबी बहुत पसन्द है। लाला मै तेरे लिए जलेबी लाया हूँ। दूसरे मित्र ने कहा -लाला मेरी माँ ने तेरे लिए खीर बनाई है।
तीसरे ने कहा -मेरी माँ ने तेरे लिए दहीवड़े बनाए है।

कन्हैया ने कहा -मै अकेला नहीं खाऊँगा। हम सब साथ मिलकर खायेंगे। कन्हैया ने मित्रों को समझाया कि कभी अकेले  मत खाओ। सब को थोड़ा-थोड़ा बाँट कर खाओ। वे सभी गोपबालको के साथ  बैठकर विनोद करते हुए खा रहे थे। स्वर्ग के देवता भी आश्चर्यचकित होकर यह अध्भुत लीला देख रहे थे।


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