तो सामान्य जीव की तो बात ही क्या?ब्रह्माजी ने परीक्षा लेने की सोची कि यह कृष्ण ईश्वर है या साधारण देव।
वे मुझ जैसी सृष्टि बना पायेंगे तो मै मानूँगा कि वे ईश्वर है।
सभी गोपबालक भोजन कर रहे थे। उसी समय ब्रह्माजी ने माया के बल से सभी बछड़ों को ब्रह्मलोक में
उठा ले गए। गोपबालको को भोजन करते समय अपने बछड़ों की याद आई। देखा तो बछड़े वहाँ नहीं थे।
उन्होंने कन्हैया से बात की।
कन्हैया ने मित्रों से कहा,तुम भोजन करो,मै बछड़े लेकर आता हूँ। कृष्ण बछड़े को ढूँढ़ने गए।
उसी समय ब्रह्माजी सभी गोपबालको को माया से उठाकर ब्रह्मलोक में ले गए।
इस कथा के पीछे एक और रहस्य है।
जब तक बच्चें श्रीकृष्ण में नजर रखकर भोजन कर रहे थे तब तक आनन्द था। किन्तु बछड़ो की चिन्ता होते ही विषयों में उनका मन गया तो ब्रह्मा बछड़ो को उठाकर ले गए। गोपबालक ब्रह्माकी माया के अधीन हो गए।
ब्रह्मा भी कालका एक रूप है। सांसारिक विषयों की ओर मन गया नहीं कि जीवको ब्रह्मा-काल पकड़ लेते है। भोजन करते समय यदि दृष्टि भगवान की ओर होगी तो भोजन भी भजन हो जायेगा।
श्रीकृष्ण बछड़ों को ढूंढ न पाए तो वापस लौटे। देखा तो गोपबालक गायब थे। श्रीकृष्ण समझ गए कि यह सब ब्रह्माजी की करतूत है। वे सोचने लगे -यह बूढ़ा(ब्रह्माजी) बिना कारण मेरे पीछे पड़ा है। उसे पता नहीं है कि
मै उसका दादा हूँ। कोई जगह विष्णु को ब्रह्माजी का दादा कहा है,तो कहीं पर ब्रह्माजी का पिता कहा है।
देवी भागवत में नौवें स्कन्ध में सृष्टि की उत्पत्ति की कथा है।
सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में सर्व शास्त्रों में एकमत नहीं है।
महात्माओं ने ईश्वर के स्वरुप के बारे में अधिक विचार किया है।
उनमे ईश्वर के स्वरुप के विषय में अधिक मतभेद नहीं है।
भागवत में कहा है -
वैंकुंठ में लक्ष्मीनारायण विराजमान थे। उनकी नाभि में कमल उत्पन्न हुआ और उस कमल में से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। इसलिए यहाँ विष्णु को ब्रह्मा के पिता कह सकते है।
शुकदेवजी वर्णन करते है -राजन,परम आश्चर्य हुआ है।
प्रभु ने लीला की। प्रभु ने सभी बालकों और बछड़ो का रूप धारण किया।