जबकि श्रीकृष्ण (विष्णु)कहते है -मै बिना पंच महाभूत की मदद से
सृष्टि उत्पन्न करता हूँ। मेरे कोई चीज की जरुरत नहीं है। मै खुद पंच महाभूत को उत्पन्न करता हूँ।
मै केवल संकल्प से सृष्टि उत्पन्न करता हूँ।
द्रौपदी की साड़ी कौन सी मिल की बनी थी? स्वयं कृष्णने ही साड़ी की कल्पना की थी ।
भगवान् के संकल्प ने साडी उत्पन्न की थी। यह तो श्रीकृष्ण का संकल्प था,लीला थी।
श्रीकृष्ण ने गोपबालको की कमली,लकड़ी आदि के अनेक रूप धारण किये।
भागवत में तो लिखा है कि-श्रीकृष्ण ने गोपबालको जैसा स्वभाव भी धारण किया है।
वैष्णव ब्रह्म के परिणामवादमें विश्वास रखते है और वेदांती विवर्तवाद में।
जगद्गुरु शंकराचार्य का वाद,विवर्तवाद है। यह जगत मिथ्या है,असत्य है।
इसके अधिष्ठाता सत्य होने के कारण यह जगत सत्यरूप भासमान होता है।
वस्तुतः ईश्वर तो एक ही है। एक ही परमात्मा अनेक रूप धारण करते है किन्तु उनके वे स्वरुप सत्य नहीं है।
अविद्या के कारण असत्य जगत सत्य आभासित होता है।
भागवत में भक्तिं और ज्ञान का समन्वय किया है।
श्री महाप्रभुजी कहते है -ब्रह्म निर्विकार है,फिर भी ब्रह्म का परिणाम होता है। दोनों सिध्धांत सत्य है।
श्री कृष्ण ही लाठी है। श्रीकृष्ण सत्य है और उनके कारण ही लाठी का भास होता है।
ब्रह्म निर्विकार रहते हुए भी विकारी होता है।
गायों की इच्छा परमात्मा से मिलने की थी। सो कृष्ण ने बछड़े का रूप धारण किया।
असली बछड़े तो ब्रह्मलोक में थे। जिन बछड़ो ने स्तनपान छोड़ दिया था,वे आज स्तनपान कर रहे है।
गाये भी आज बड़े बछड़ो को स्तनपान कराने लगी।
यह दृश्य देखकर बलराम को पहले आश्चर्य हुआ
किन्तु अन्तर्मुख होकर देखा तो पाया कि ये सब बछड़े तो कृष्ण के ही स्वरुप है।
श्रीकृष्ण जो आज गोपबालक बने है,दौड़ते हुए दादीमाँ के पास आये है।
जिन वृद्ध गोपियों को श्रीकृष्ण से मिलने की इच्छा थी उनके साथ आज श्रीकृष्ण ने गोपबाल-लीला की।
वृध्द गोपियाँ अपने बालकरूपी कन्हैया को उठाकर गले लगाने लगी।
श्रीकृष्ण ने आज गायों और वृध्द गोपियों को ब्रह्मसंबंध का लाभ दिया।
प्रसिध्द वेदवाक्य -”सर्व विष्णुमयम जगत”(सर्व जगत विष्णुरूप है)
श्रीकृष्ण ने यह आज सच साबित किया है।