उन्होंने देखा तो सब कुछ पूर्ववत चल रहा था। वहीं बालक और वहीं बछड़े और श्रीकृष्ण उनके साथ खेल रहे थे। ब्रह्माजी सोच में पड़ गए। क्या यह बछड़े और गोपबालक सच्चे है या वे सच्चे है जिन्हे मै ब्रह्मलोक में ले गया हूँ?
श्रीकृष्ण ने एक और लीला करने की सोची। उन्होंने ब्रह्मा का रूप धारण किया और ब्रह्मलोक में गए।
वहाँ जाकर नौकरों से कहा कि यहाँ एक नकली ब्रह्मा घूम रहा है। अगर वो यहाँ आ जाये तो भलीभाँति मरम्मत करना।वे ब्रह्माजी की गद्दी पर जाकर आराम करने लगे।
इधर सोच में डूबे हुए ब्रह्माजी ब्रह्मलोक में वापस आये। नौकरो ने सोचा कि -
असली ब्रह्माजी तो अंदर आराम कर रहे है। जरूर यह नकली ब्रह्माजी होने चाहिए और वे उन्हें मारने लगे।
मनुष्य को भी जब मार पड़ता है तब उसकी असली आँखे खुलती है और सच्चा ज्ञान आता है।
ब्रह्माजी सोचते है -यह सब क्या है ? मेरे ही नौकर मुझे नकली ब्रह्मा कहकर मार रहे है। मेरे घर में है कौन?
ब्रह्माजी ने आँखे बंद कर के देखा तो श्रीकृष्ण अंदर आराम से विराजमान है।
उनके चारो और गोपबालक और बछड़े है।
ब्रह्माजी को अपनी भूल समझ आई। उन्हें विश्वास हो गया कि श्रीकृष्ण साधारण देव नहीं है। वे तो सर्व देवों के देव है। वे सोचते है -मेरे नारायण ही श्रीकृष्ण बने है। श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने चले थे,किन्तु स्वयं उन्ही की परीक्षा हो गई। मैंने अपराध किया है। उनके भोजन में भंग किया है। अब मै उनसे क्षमा माँगूंगा।
प्रभु की परीक्षा लेनेकी भूल की -क्षमाके लिए ब्रह्माजी ने प्रभु से क्षमा-प्रार्थना की।
"जैसे गर्भ में रही संतान का प्रहार माताको क्रोधित कर नहीं पाता।
माता को तो क्रोध की अपेक्षा आनंद ही होता है। इसी भाँति मेरे अपराध का क्षमा कीजिये।
मेरा शरीर तो पञ्चतत्वों से बना हुआ है,किन्तु आपका शरीर तो केवल आनन्दमय है।"
भगवान् आनंदमय है।
एक उदहारण है -एक भाई को रात को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर में लेटे -लेटे याद आया कि आज उसे चाय
नहीं मिली थी। इसलिए उठकर चाय बनाने की तैयारी करने लगे। देखा तो घर में चीनी नही मिल रही है।
आधी रात को किसके यहाँ चीनी लेने जाए? फिर याद आया कि मकरसक्रांति में बच्चों के लिए चीनी के खिलौने लाया था। उसे ढूंढने लगा। बहुत ढूंढने पर खिलौनों का डिब्बा मिला। उसमे से चीनी का हाथी निकाला।
हाथी का पाँव तोड़कर चाय में डाला।
जरा सोचो। चाय में चीनी डाली या हाथी का पाँव डाला? चीनी के खिलौने (हाथी) चीनीमय है।
उसी तरह निर्गुण में से सगुण हुए परमात्मा भी आनंदमय है। श्रीकृष्ण का शरीर भी आनंदमय है।
श्रीकृष्ण से आनन्द अलग नहीं है। ब्रह्माजी को अभिमान हुआ था कि जगत को मै उत्पन्न करता हूँ।
वह अभिमान अब नष्ट हुआ है।