Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-369



प्रातःकाल में ब्राह्मणों ने आकर गणेशजीकी पूजा करवाई। कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम है अतः धर्म की सभी मर्यादा का पालन करते है। गायों की पूजा करके उन्होंने प्रदक्षिणा की। यह तो श्रीकृष्ण की पौगण्डावस्था है।
शांडिल्य ऋषि की आज्ञा होने पर कन्हैया ने माँ को प्रणाम किया,यशोदा की आँखों में आँसू आये।
कन्हैया ने रोने का कारण पूछा। यशोदाजी ने कहा - तू सुबह से गायों को लेकर वन में जाएगा
और शाम को लौटेगा। तेरे मनोहर चेहरे को देखे बिना मेरा सारा दिन कैसे बीतेगा।

जब जीव ईश्वर के बिना एक क्षण भी न जी सके और ऐसी स्थिति पर पहुँचे -
तब ईश्वर शीघ्र ही उसकी गोद में आ जाते है।
यशोदाजी ने कन्हैया को जूते पहनाना चाहे पर कन्हैया ने मना किया और कहा - मै गोपाल हूँ,गायों का सेवक हूँ। मेरी गाये पाँव में जूते नहीं पहनती तो क्या उनका सेवक पहन सकता है क्या?
यशोदाजी-बेटा  गाये  तो पशु है।
कन्हैया -माँ ऐसा  मत कहो। गाय पशु नहीं पर हम सबकी  माता है।  उसमे सभी देवों का वास है।
मै तो गायों का सेवक हूँ।

महात्माओं ने कहा है - जब तक कृष्ण गोकुल में थे,उन्होंने चार प्रकार के संयमो का पालन किया था।
(१) गोकुल में उन्होंने सिले हुए कपडे नहीं पहने क्योकि गोपबालक मित्र गरीब थे।
(२) जब तक गोकुल में रहे उन्होंने शस्त्रास्त्र धारण नहीं किया। एक हाथ में माखन-मिसरी  तो दूसरे में बाँसुरी।    बाँसुरी की मधुर ताल से ही वे सारे गोकुल को घायल कर देते थे।
(३) अपने सिरकेश कभी नहीं उतारे। गोकुल का कन्हैया प्रेम-मूर्ति है।
(४) कन्हैया ने कभी जूते नहीं पहने।

श्रीकृष्ण कहते है -मै गायों का नौकर हूँ।
उन्होंने गायों की जैसी सेवा की वैसी न तो कोई कर सका है और न कर सकेगा।
गायों को खिलाए बिना कन्हैया ने कभी नहीं खाया। गायों को पानी पिलाए बिना कभी पानी भी नहीं पिया है।
ऐसा कन्हैया जब गोकुल छोड़कर चला जाए और गाये आँसू बहाने  लगे,इसमें आश्चर्य ही क्या है?
पशु होने पर भी सभी गाये श्रीकृष्ण के पास ही रहना चाहती थी।
कन्हैया अपने पीताम्बर से ही गायों को पोंछता था और अपनी मिठाई भी खिलाता था।
माँ कभी पूछती तो कहता कि मुझे गाये बड़ी प्यारी है। उनके खाने से मुझे आनन्द मिलता है।

वृंदावन में श्रीकृष्ण अपने बालमित्रों के साथ अनेक प्रकार की खेल खेलता था। एक बार मित्रों ने लाला को शिकायत की कि तालवन में फल तो बहुत है किन्तु धेनकासुर नामक राक्षस किसी को लेने नहीं देता।

तालवन में यह राक्षस गधे के रूप में रहता था।भगवान ने प्रहलाद को वचन दिया था कि उसके वंशजमें किसी राक्षस को नहीं मारेंगे इसलिए कृष्ण उसे नहीं मारते। बलभद्र (बलराम) ने उसका वध किया है।

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