वन में फल सड़ जाए फिर भी किसी को न दे वही धेनकासुर है। अपने पास बहुत होने पर भी किसी को न दे वह धेनकासुर है,गधा है। देहको सर्वस्व मानने वाला अति संग्रह करने वाला धेनकासुर है।
धेनकासुर तालवन का मालिक तो नहीं था किन्तु बरसों से वहाँ रहने पर उसने वहाँ कब्ज़ा जमा लिया था।
धेनकासुर देहाध्यास है,अविद्या के कारण होता है। ऐसा होने पर सांसारिक पदार्थों के लिए जीव मन में ममता,राग-द्वेष आदि उत्पन्न होते है। जब तक अविद्या नष्ट नहीं होती तब तक संसार नहीं छूटता।
अविद्या जीव के पॉँच प्रकार है। -
(१) स्वरुप-विस्मृति,(२) देहाध्यास,(३) इंद्रियाध्यास (४) प्राणाध्यास (५) अंतःकर्णाध्यास।
देहाध्यास में जीव अपने को बड़ा स्वरूपवान,विद्यावान,सम्पत्तिवान मानने लगता है,देहभिमानी हो जाता है।
ऐसे लोग दूसरों का अपमान करने लगते है,दूसरों को सताते है। ऐसे देहाध्यास को बलभद्र ने मारा।
भगवान की आधिदैविक शक्तिसे ही देहाध्यास का नाश हो सकता है।
अब आती है कालियनाग-दमन की बात।
प्रभु ने कालियनाग का उध्धार करने का निश्चय किया। वे सभी बालकों केउस जलाशय के किनारे गेंद खलने लगे जिसमे कालियनाग रहता था। खेल-खेल में गेंद उस जलाशय में जा गिरी।
बालमित्रों ने कहा -लाला,इसमें नाग रहता है सो कोई भी इसका पानी नहीं पीता। तुम भी उसमे गेंद लेने मत जाओ। फिर भी कृष्ण कदम के पेड़ पर चढ़ जलाशय में कूदे।
कालियनाग उन्हें डंसने लगा। ज्यों -ज्यों वह डंसता जाता था,विष अमृत बनता जा रहा था।
कन्हैया ने एक हाथ से फन पकड़ा और दूसरे से पूँछ। फिर फन पर आरूढ़ हो गए।
सभी बालक घबरा गए। कन्हैया ने बालमित्रो से कहा -तुम घबराओ नहीं। भगवान् तो फन पर नाचने लगे।
कन्हैया धीरे-धीरे अपना वजन बढ़ाता जाता था,अतः कालियनाग व्याकुल हो गया।
नाग-पत्नियाँ शरण में आकर प्रार्थना करने लगी। आपने हमारे पति को जो दण्ड दिया है वह उचित ही है क्योंकि इससे ही उसके पापों का नाश होगा। आप तो कर्मानुसार सभी को दण्ड देते है।
वैसे तो अब हमारा पति दुष्ट नहीं रहा है क्योंकि उसके मस्तक पर आपने अब चरण रखे है।
श्रीकृष्ण ने कालियनाग से कहा,तेरे कारण या सारा जलाशय विषैला हो गया है,सो तू यहाँ से कहीं दूर चला जा।
कालियनाग-प्रभु,मै तो जाने के लिए तैयार हूँ किन्तु मुझे गरुड़जी का डर लगता है।
भगवान ने कहा -मेरे चरणों के स्पर्श के कारण गरुड़जी अब तुझे नहीं मारेंगे।
कालियनाग गरुड़जी के भय के कारण उस जलाशय की धरा में छिपा हुआ था।
कालियनाग के सौ फन थे।
मनुष्य के मन में कितनी वासनाएँ (फन) है उसकी तो कल्पना करना भी मुश्किल है।
मनुष्य का मन संकल्प-विकल्प करता है वह फन ही है।