Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-374



एक गोपी बोली -अरी सखी,तुझे क्या बताऊ? बंसीनाद  सुनते ही गौमाताएं घास खाना छोड़कर-
बंसी के नादमृत का बड़े ध्यान से पान करने लग जाती है।
भगवान् की प्रेमरस बंसी की धुन सुनकर गाये घास चबाना भूलकर आनंदके अश्रु बहाने लग जाती है।
बछड़े भी दूध पीना भूल जाते है। कन्हैया की बांसुरीवादन मनुष्य,पशु,पंछी,वृक्ष सभी शांति से सुनते है।
वृंदावन की वन्यसृष्टि दिव्य है।

दूसरी गोपी बोली -जब कन्हैया बाँसुरी बजाता है तो पंछी भी शान्त हो जाते है।
कई ऋषि भी पक्षी का रूप लेकर वृंदावन की लीला-निकुंज में राधेश्याम-राधेश्याम करते-करते
इधर-उधर उड़ते फिरते है।

गोपियाँ लालाकी बांसुरी की बाते कर रही थी कि यशोदाजी आकर  कहने लगी -
मै रोज़ कन्हैया को कहती हूँ,गरमी है,पाँव में जूता पहनके जा, फिर भी वह पाँव में जूते नहीं पहनता।
तब,गोपीने कहा - माँ,आप चिन्ता मत करो वन के देवी-देवतायें लाला की सेवा करते है।
कन्हैया का एक मित्र तो ऐसा है कि कन्हैया के सिर पर छाता रखकर चलता है।
यशोदाजी ने पूछा -ऐसा कौन सा मित्र है? मुझे भी बताओ। मै उसे प्रेम से खिलाऊँगी।

गोपी बोली-माँ,वह मित्र ऐसा कि कभी घर नहीं आता। उस मित्र का नाम है मेघराज।
कन्हैया जहाँ -जहाँ जाता है वह छाया करता है।
मेघराज ऐसा समझता है कि उसका और कन्हैया का रंग एक जैसा है। इसलिए वह उसका खास मित्र है।
बहुत गरमी में वह झर-झर वर्षा करता है।

यशोदाजी बोली- यह तो अच्छा हुआ,फिर भी,धरती पर नंगे पाँव चलने उसे कष्ट होता होगा।
गोपी बोली- नहीं,गिरिराज कन्हैया के लिए माखन से कोमल हुए है।
कन्हैया के चरण- स्पर्श से गिरिराज की कठोरता चली जाती है।
यशोदाजी शंका कराती  है-यदि गिरिराज कोमल हो तो लाला के पाँवसे उसमें   गड्ढ़े  (चरण-चिह्न)पड़ने चाहिए। और सभी गाये और गोपमित्र के पाँवसे भी गड्ढ़े  पड़ने चाहिए।
पर आज तक मैंने किसी के भी पाँवके गड्ढ़े,गिरिराज में  नहीं देखे।

गोपी ने कहा - माँ,आपकी शंका बराबर है। जब शाम को लाला घर लौटनेके लिए निकलता है तब गिरिराज को उसका वियोग होता है। कन्हैया प्रेम से उसे अपनी नजर देता है और बांसुरी बजाता है। गिरिराज को आनंद होता है और आनंद में फूलने लगता  है जिससे कन्हैया के पाँव के गड्ढ़े पट (मिट) जाते है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE