Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-376



सभी इंद्रियों से भक्तिरस का पान करता हुआ जीव अपना स्त्रीत्व या पुरुषत्व (देहाध्यास)भुला दे,वो ही गोपी है।
इस सर्वोत्तम गोपीभावसे अपना देहभान,अपना नारीत्व या पुरुषत्व का विस्मरण करना है।  
देहभान शेष होगा तो काम नष्ट नहीं होगा। काम भुलाय जाने पर ही गोपीभाव जागता है।
परमात्मा का इस प्रकार स्मरण करो कि अपना देहभान ही न रहे।

लाला की बांसुरीके  नाद (नादब्रह्म) में तन्मयता और उससे देहाध्यास -
ये प्रसंग रासलीला में जाने की तैयारी बताते है। इसलिए वेणुगीतसे गोपियोंकी कथा शुरू होती है।

(१) इस वेणुगीत में “ब्रह्मचारिणी गोपियों”की कथा है।
(२) यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों की पत्नियों के प्रसंग में “विवाहिता”- गृहस्थाश्रमी गोपियों की कथा है।
(३) गोवर्धनलीला में “वानप्रस्थ गोपियों”की कथा है।
(४) रासलीला में सन्यासी गोपियों की कथा है।

भागवत में श्रीकृष्ण लीला का क्रम है उसमे भी रहस्य है।
सन्यासी परमात्मा के लिए सर्वका और शरीरमें जो काम-क्रोध-आदि है उस शरीरका भी त्याग कर देते है,
वे शरीरका भी मन से त्याग करते है। इसलिए रासलीला में गोपियों ने कहा है-
”तुम्हारे लिए हमने सब कुछ छोड़ दिया है।"  रासलीला में गोपियाँ सन्यासिनी है।

अब “यज्ञ-पत्नियों”(यज्ञ करने वाले ब्राह्मण की पत्नियाँ -गृहस्थाश्रमी गोपियाँ) का प्रसंग आता है।
एक बार गोप-बालको को भूख लगी तो उन्होंने कन्हैया से बात की। कन्हैया ने उनको यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों के
पास भेजा। उस समय ब्राह्मणोंने,गोप-बालकों को  कुछ भी भोजन नहीं दिया,
किन्तु ब्राह्मणों की पत्नियों (“विवाहिता”- गृहस्थाश्रमी गोपियों) ने उन्हें भोजन कराया।
यही है यज्ञ-पत्नियों के उध्धार की संक्षिप्त कथा।

उसके बाद,गोवर्धन लीला का प्रारम्भ होता है। गोवर्धनलीला के पश्चात आएगी रासलीला।
श्रीकृष्ण ने सातवें साल में गोवर्धनलीला और आठवें साल में रासलीला की -ऐसा भागवत में लिखा है।

"गो" का अर्थ है "ज्ञान और भक्ति"। ज्ञान और भक्तिको वृध्धिगत करनेवाली लीला ही गोवर्धनलीला है।
ज्ञान और भक्ति के बढ़ने से देहाध्यास नष्ट होता है और जीव  को रासलीला में प्रवेश मिलता है।

गोवर्धनलीला में ज्ञान और भक्ति बढ़ाने के कई उपाय बताए है।
कई लोग बहुत पुस्तकें पढ़ते है पर उसके बारे में सोचकर जीवन में नहीं उतारते।
कई कथा बहुत सुनते है ओर कोई साधन नहीं करते। मात्र सुना हुआ ज्ञान कुछ काम का नहीं है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE