इंद्रियों का संवर्धन त्याग से होता है। भोग से इन्द्रियाँ क्षीण होती है। भोगमार्ग से हटाकर उनको भक्तिमार्ग में ले जाना है। ऐसे समय इंद्रियादि देव वासना की बरसात करते है।
मनुष्य जब निवृत्ति लेकर ज्ञान-भक्ति बढ़ाने का प्रयत्न करते है तब देवों से यह सहा नहीं जाता।
उपनिषद में वर्णन है कि निवृत्ति लेकर प्रभुभक्ति करते हुए जीव को इंद्र सताता है।
वह सोचता है कि उसके सर पर पाँव रखकर,उसको कुचल कर,यह जीव आगे बढ़ जाएगा।
सो ध्यान,सत्कर्म,भक्ति आदि में जीव की अपेक्षा देव अधिक बाधक है।
जीव सतत ध्यान करे तो स्वर्ग के देवों से भी श्रेष्ठ हो सकता है।
देवों को ऐसा लगता है कि यह तो हमारे से भी श्रेष्ठ हो जायेगा तो हमारा क्या होगा?
इसलिए देव(इंद्र वगेरे) वासना की बरसात करते है। मनुष्य जब निवृत्ति में विषयसुख का स्मरण करने लगे
तब जीव घबराता है। ऐसे समय में गोवर्धननाथ का आश्रय लेना पड़ता है।
नामसेवा-स्वरुपसेवा (भक्ति)का जो आश्रय ले वह वासना की बरसात के वेग को सहन का सकता है।
गोवर्धनलीला ज्ञान और भक्ति को बढाती है। उनके बढ़ने से रास-लीला में प्रवेश मिलता है
किन्तु उस अवस्था में इंद्रिय-वासना की बरसात से बचना बहुत जरुरी है।
गोवर्धनलीला में "पूज्य और पूजक" "सेव्य और सेवक" एक हो जाते है।
पूजा करने वाला श्रीकृष्ण,और जिसकी पूजा होतीहै (गिरिराज) वह भी श्रीकृष्ण।
पूज्य और पूजक (आत्मा और परमात्मा) एक न बने तब तक आनंद नहीं आता।
अद्वैत का यह पहला सौपान है,रासलीला का यह फल है।
जब गोवर्धनलीला हुई तब श्रीकृष्ण सात सालके थे।
हर साल नंदबाबा इन्द्रयाग करते थे। यज्ञ की तैयारी होने लगी तो कन्हैया ने पूछा -
बाबा,यह सब किसकी तैयारी हो रही है? कौन से देव और किस उद्देश्य से यह यज्ञ किया जा रहा है?
नन्दबाबा समझाने लगे -वर्षा के देव इन्द्र है। इन्द्र बरसात बरसाये तो धान्य और घास उग सके,
इसलिए उन्हें खुश करने के लिए यह यज्ञ है।
कन्हैया बोला - इन्द्र का यज्ञ करो वह तो ठीक है पर इन्द्र को ईश्वर मानो वह ठीक नहीं है।
इन्द्र ईश्वर नहीं है पर मनुष्य अगर सौ अष्वमेध यज्ञ करे तो इन्द्र हो सके। बाबा,इन्द्रके इन्द्रको आप नहीं जानते हो? नंदबाबा-बेटा,कौन है वह?
कन्हैया- यह मेरा गोवर्धन इन्द्र का इन्द्र है। वह चार दिशाओं का देव है। एक-एक दिशा का मालिक एक-एक कौने में बैठा है। और बीच में सर्व का मालिक,सबसे श्रेष्ठ गोवर्धननाथ बैठा है। बाबा आप उनकी पूजा करो।