कन्हैया --आज तक गोवर्धननाथ की पूजा नहीं की फिर भी वे नाराज़ नहीं हुए तो एक साल अगर इन्द्र की पूजा
नहीं करोगे तो वे नाराज़ हो तो होने दो। इन्द्र अगर नाराज हो तो मेरे गोवर्धननाथ हमारी रक्षा करेंगे।
बाबा आपसे एक बात पुछु? आप कई वर्षो से इन्द्र की पूजा करते हो,पर क्या आपने कभी उनके दर्शन किये है?
नन्दबाबा-- नहीं,मैंने कभी उन्हें नहीं देखा।
कन्हैया--इतने बरसों की पूजा के बाद भी वह दर्शन नहीं देता है। इसका अर्थ यह हुआ कि वह अभिमानी है।
जिस देव को आपने कभी देखा नहीं है,उसकी पूजा क्यों करते हो? यह गोवर्धननाथ तो हमारा प्रत्यक्ष देव है।
जो पर्वत दिखाई दे रहा है वह तो उसका आधिभौतिक स्वरुप है। उसका आधिदैविक स्वरुप तो और ही है। गोवर्धननाथ इस पर्वत में सूक्ष्म रूप से बसे हुए है।
वह हम सभी के रक्षक है। बाबा- मुझे कई बार उनके दर्शन हुए है।
नंदबाबा--लाला,तुझे गोवर्धननाथ के दर्शन कब हुए?
कन्हैया ने कहा -बाबा,एक बार मुझे दो शेर जंगल में मिले। मै घबरा गया। तब गिरिराज में से चार भुजा वाला देव बहार आया और दोनों शेर को मार डाला और मेरे सिर पर हाथ रखकर कहा -तू घबराना मत,मै तेरी रक्षा करूँगा। मेरे गोवर्धननाथ दीपक की जीवंत ज्योत है।
नन्दबाबा बहुत खुश हुए। उन्हें हुआ कि मेरे लाला को गोवर्धननाथ के दर्शन हुए है इसलिए वह इतने चमत्कार करता है। इन्द्र के अभिमान को मिटाने का श्रीकृष्ण ने निश्चय किया है सो सबको समझा रहे है कि इन्द्र के बदले गोवर्धननाथ की पूजा की जाए।
नंदबाबा -- लाला,हम गोवर्धननाथ की पूजा जानते नहीं है तो कैसे करेंगे?
कन्हैया-बाबा,मै जानता हूँ। तुम चिंता मत करो।
सब पूजा करने के लिए तैयार हुए है।
कन्हैया- इन्द्र के यज्ञ में मात्र ब्राह्मण का सन्मान होता है,पर गरीबों का सन्मान नहीं होता। मुझे गरीबो को खिलाना है। गरीबोको अन्नदान,गायों की सेवा और साधुओं का सन्मान हो तब परमात्मा प्रसन्न होते है।
मुझे गायों का जुलूस निकालना है।
नये साल के दिन अन्नकूट करेंगे इसलिए सब तरह-तरह की अच्छी खाने की चीजें बनाकर लाना।
जिसके घर से खानेकी खाद्य-सामग्री नहीं आयेगी उसके घर अन्नपूर्णा नहीं आयेगी।
नंदबाबा ने पूछा - लाला, क्या मुझे तेरे ठाकुरजी भोजन करते हुए दिखाई देंगे?
कन्हैया -हम सब देख सकेंगे।