मथुरा से अठारह मील दूर जतीपुरा नाम का एक गाँव है जहाँ पर गोवर्धननाथ का मुखारविंद है।
अलग-अलग प्रकार की खाद्य-सामग्री गाडी में भर कर व्रजवासी आये है।
सभी ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया है। प्रथम गणेशजी की पूजा की है।
फिर सभी ब्राह्मणों को कहा -आप वेद मन्त्र बोलो और मै गोवर्धननाथ का नहलाकर अभिषेक करूँगा।
अभिषेक के लिए सभी गोपबालक यमुनाजी से जल लाते है और श्रीकृष्ण अभिषेक करते है।
गिरिराज से यमुनाजी दूर है। गोपबालक जल लाते-लाते थक जाते है इसलिए कन्हैया से कहते है -
तेरे देव तो बहुत बड़े है। उन्हें नहलाने के लिए तो बहुत पानी चाहिए। हम तो थक गए है।
कन्हैया गोवर्धननाथ से प्रार्थना करता है -आपके चरण में सर्व देवों का वास है। हम सब कुछ छोड़कर आपके चरण में आये है। आपके चरण में गंगा-जमुना सर्व तीर्थ है। कृपा करके प्रकट हो।
श्रीकृष्ण ने जैसे ही प्रार्थना की -उसी समय गिरिराज में से खड़ -खड़ करते हुए गंगाजी प्रकट हुए है।
सभी बालक आनंद से उछलने लगे और बोलने लगे -कन्हैया यहाँ तो नदी आई है।
कन्हैया ने समझाया कि यह कोई सामान्य नदी नहीं,गंगाजी है। गोवर्धन का अभिषेक पूर्ण हुआ।
कन्हैया ने फिर गोवर्धननाथ का श्रृंगार किया। व्रजवासी और गोपबालको ने कहा -लाला,तेरे ठाकुरजी गाल में धीमे-धीमे हँस रहे है। अभिषेक के दर्शन से सर्व को आनन्द हुआ है।
व्रजवासी चन्दन लाये है। उन्होंने कन्हैया से कहा -शर्दी की ऋतु है सो चन्दन से हमारे भगवान को कष्ट होगा। बालकों ने कुंकुम का तिलक करने का सोचा।
कन्हैया - यह ठीक है किन्तु ध्यान रहे कि कहीं उनकी नाक में न चला जाए। नहीं तो छींक आएगी।
नंदबाबा ने पूछा-लाला तेरे ठाकुरजी को छींक भी आती है?
कन्हैया -क्यों नहीं? बाबा हम थोड़ी पहाड़ की पूजा करने आये है? यह तो प्रत्यक्ष परमात्मा है।
जड़ में चेतनता की भावना करनी है.
सेवा-पूजा करते समय मूर्ति को चेतन मानो। मूर्ति में साक्षात् परमात्मा है,ऐसा मानो।
अपने देह के प्रति जो प्रेम रखते हो,वैसा ही प्रेम भगवान के प्रति रखो।
कन्हैया ने आज मस्ती की है। अपना एक स्वरुप नंदबाबा के पास रखा और दूसरा गिरिराज में प्रवेश किया। व्रजवासी,गोपबालक और नंदबाबा सब एक साथ बोल उठे -कन्हैया,यह पर्वत तो साँस ले रहा है।
लाला, गोवर्धननाथ तो चेतन है,जड़ नहीं।