(१) आधिभौतिक स्वरुप -यह जो गोवर्धननाथ दिखाई देते है वह आधिभौतिक स्वरुप है।
(२) अध्यात्मस्वरूप - सर्व में ठाकुरजी (भगवान्) है। (आत्मरुप) ये अध्यात्म स्वरुप है।
(३) आधिदैविक स्वरुप - खूब सेवा-स्मरण करने पर भगवान् आधिदैविक रूप में प्रकट होते है।
व्रजवासी अब कन्हैयासे पूछते है - लाला,अब गोवर्धननाथ को चावल से अभिवादन करे?
कन्हैया -नहीं,अगर चावल ठाकुरजी के आँख-कान में में चले गये तो उन्हें बहुत कष्ट होगा।
मेरे ठाकुरजी का तो मोतियों से अभिवादन करो। लाला ने अपने गले से मोती की माला तोड़कर मोती सभीको दिए। गोपबालक मोती देखकर खूब खुश हुए और कहने लगे -लाला,हम इसे घर ले जाकर माला बनायेंगे।
कन्हैया -तुम ऐसी कंजुसायी मत करो। गोावर्धननथ को अर्पण करोगे तो वह तुम्हारा घर मोतियों से भर देगा। लक्ष्मीजी तुम्हारे घर हमेशा रहेगी।
गोपबालको ने मोतियों से गोवर्धननाथ का अभिवादन किया और फिर कन्हैया से पूछा -अब हमारे क्या करना है? कन्हैया- मेरे ठाकुरजी को भूख लगी है। सब खाद्य-सामग्री लाओ।
व्रजवासी सभी सामग्री लाये और किल्ला आकर में रखकर तुलसी के साथ अर्पण की।
व्रजवासी- क्या गोवर्धननाथ सचमुच खायेंगे?
कन्हैया- हाँ,मेरा नाथ तो दीपक की ज्योति-सा जीवंत है,प्रत्यक्ष है। वह हमारे सामने ही खायेगा।
कन्हैया अब प्रार्थना करता है -
हे गोवर्धननाथ,आपको कौन खिला सकता है? आप तो समग्र जगत के अन्नदाता है।
हमारी भावना है कि आपको भोजन करते हुए निहारें।
और उसी समय कन्हैया ने लीला करी। एक रूप में प्रार्थना करते है और दूसरे स्वरुप में गिरिराज की शिखर पर चतुर्भुज नारायण रूप में प्रकट हुए। परमानन्द हुआ है।
कन्हैया नंदबाबा से कहता है -बाबा,यह साक्षात् परमात्मा है। सर्वजन नारायण को वंदन करते है।
आज कन्हैया खुद अपने आपको वंदन करता है।
गिरिराज पर प्रकट हुए नारायण थाली उठाकर खाने लगे।
गोपबालक आनंद से नाचने लगे और कहने लगे-लाला,यह तो सचमुच खा रहे है।
सभी बोल उठे-कन्हैया के ठाकुरजी तो सचमुच दीपक की ज्योति समान जीवंत और प्रत्यक्ष है।