चलो तब तक हम कीर्तन करते हुए गिरिराज की परिक्रमा करे।
नंदबाबा और गोपबालक कीर्तन करते हुए परिक्रमा करते है।
गिरिराज की परिक्रमा पाप को जलाती है। परिक्रमा करते समय बीच में राधाकुंड है।
राधाकुंड की रज अति पावन है। भक्तजन इस रज का तिलक करते है।
सब परिक्रमा कर के वापस आये पर गोवर्धननाथ अभी भी खा रहे थे।
गोपबालको को भूख लगी है इसलिए कहने लगे -लाला,लगता है तेरा गोवर्धननाथ बहुत समय से भूखा है।
क्या यह सब खाना खा जायेगा? क्या हमारे लिए कुछ भी नहीं बचेगा?
तू तो हमारे बिना कुछ नहीं खाता पर तेरे ठाकुरजी तो अकेले-अकेले सब कुछ खा रहे है।
कन्हैया समझाने लगा -तुम घबराओ नहीं। मेरे ठाकुरजी अति उदार है। वे जितना खायेंगे उससे ज्यादा वापस देंगे। तुम सब दर्शन करो। सभी ने फिर आरती उतारी है और प्रसाद लेने बैठे है।
छोटा कन्हैया परोस रहा है और सभीको आग्रह करके खिला रहा है।
गोपबालक कहते है - आज तो भोजन इतना अच्छा है कि एक की जगह तीन -चार पेट हो जाए तो मज़ा आ जाये।
कन्हैया- चाहे जितना खाओ,किन्तु बिगाड़ मत करना। अन्य ब्रह्म है। प्रसाद का अपमान करोगे तो गोवर्धननाथ क्रोधित हो जायेंगे। जो उच्छिष्ठ खायेगा,वह तुम्हारा पूण्य भी खायेगा।
अन्न का कभी अनादर मत करो। भिखारी को भी झूठा खाना मत दो। वह भी ईश्वर का अंश है।
सभी को प्रसाद दिया गया। सभी ने रात्रि के समय तलहटी में विश्राम किया।
इधर नारदजी इंद्र के पास आये और कहने लगे - इस गोपबालको ने तुम्हारी पूजा करने के बजाय गोवर्धननाथ की पूजा की है। तुम्हारा अपमान किया है।
यह सुनकर इन्द्र कोपायमान हुए है और मेघो को आज्ञा दी है -एक सामान्य गोवाल के पुत्र ने मेरी पूजा नहीं
करके मेरा अपमान किया है। जाओ,व्रज में जाकर बरसो,और गोकुल को छिन्न-भिन्न कर दो।
मेघों ने व्रज में हाहाकार मच दिया। कार्तिक मासमें इतनी भारी वर्षा कभी नहीं होती।
सभी भयभीत हो गए। नन्दजी व्याकुल हो गए और कहने लगे -लाला के कहने से हमने इन्द्र की पूजा नहीं की। जरूर इन्द्रका कोप हुआ है।