सात वर्ष के बालकृष्ण ने नंदबाबा के पास आकर कहा - आप घबराओ मत। मेरे गोवर्धननाथ सबकी रक्षा करेंगे। उन्होंने में मुझसे स्वप्न में कहा है कि वे मेरी पूजा से प्रसन्न हुए है। सात दिनों तक वर्षा होती रहेगी।
उनके शरण में जाने से वे हमारी रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा है कि-तुम सब मेरे पास आना,मै सर्व का रक्षण करूँगा। मै भाररहित होकर तेरी ऊँगली पर खड़ा रहकर सभी की रक्षा करूँगा।
नन्दबाबा बोले- ऐसी बात है तो लाला तू जल्दी गोवर्धन को उठा ले।
कन्हैया -मै अकेला कैसे उठा पाउँगा? तुम सब मेरी सहायता करना। सब गिरिराज को वंदन करो।
उनका जयजयकार करो,उनके प्रार्थना करो और उनकी शरण में जाओ।
सर्व लोग गिरिराज की शरण में आये है।
श्रीकृष्ण ने जैसे ही हाथ फैलाया गिरिराज फूल-से हलके हो गए और कन्हैया की ऊँगली पर खड़े हो गए।
श्री गिरिधारी गोवर्धन नाथकी जय। सबने गिरिराज के निचे आश्रय किया है।
सात दिनों तक मूसलधार वर्षा होती रही। परम आश्चर्य हुआ है।
कई व्रजवासी बहुत भोले थे।
सोचने लगे कि कन्हैया की ऊँगली पर कब तक गिरिराज रहेंगे? उन्होंने अपनी लकड़ी का आधार दिया है।
वे कन्हैया से कहने लगे - हमने अपनी लकड़ी पर गोवर्धन को उठा लिया है।
तू थक गया होगा,अपनी ऊँगली हटा ले।
जैसे ही कन्हैया ने अपनी ऊँगली हटाई,पर्वत का भार असह्य हो गया।
गोपबालक बोल उठे-अरे कन्हैया,यह तो निचे की और धंस रहा है। जल्दी आधार दे।
सभी को विश्वास हो गया कि गोवर्धननाथ केवल कन्हैया की ऊँगली पर ही है।
आधार लेना हो तो केवल ईश्वर का लो,किसी और का नहीं।
कन्हैया ने मात्र सात वर्ष की आयु में गिरिराज को ऊँगली पर उठाकर अपनी अलौकिक शक्ति बताई है।
कन्हैया ने दूसरे हाथ में बांसुरी लेकर उसके सुर छेड़े है।
ऐसी सुन्दर बांसुरी बजाई है कि गोवर्धननाथ डोलने लगे।
बांसुरी के नादब्रह्म में व्रजवासी ऐसे तन्मय हुए है कि सात दिन तक अपने देहधर्म और भूख-प्यास भूल गए है।