इस प्रकार सात दिनों तक भगवान् श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वतके तले सभी व्रजवासियों और गायों आदि की रक्षा की।
अब इंद्र को कन्हैयाके वास्तविक स्वरुप का ज्ञान हुआ। उनका अभिमान उतर गया।
इन्द्रने मेघों को भी रुक जाने की आज्ञा दी। और श्रीकृष्ण के पास आकर क्षमा मांगी।
इन्द्र और सुरभिने श्रीकृष्णका दूधसे अभिषेक किया। वह दूध जिस कुंड में इकठ्ठा हुआ उसे सुर्भिकुंड कहते है।
सभी व्रजवासी गोवर्धननाथ के नीचे से बाहर निकलकर वापस व्रज लौटे है।
गोवर्धनलीला के बाद कई लोग को शंका हुई है कि श्रीकृष्ण नंदजी का पुत्र नहीं है। कहाँ यह सात साल का बालक और कहाँ यह गोवर्धन पर्वत। नंदजी जरूर किसी और के बेटेको उठा लाये है।
नन्दबाबा और यशोदा तो गोरे है और कन्हैया तो काला है। हम उन्हें बुलाकर पूछेंगे?
नन्दबाबा आये है। सभी ने पूछा -बोलो, कन्हैया किसका बेटा है?
नन्दबाबा-मै सौगंध खाकर कहता हूँ कि कन्हैया मेरा पुत्र है। मैंने कोई कपट नहीं किया है।
गंगाचार्य ने भी कहा था कि इसमें नारायण जैसे गुण है।
यशोदाजी ने सुना कि लोग शंका कर रहे है इसलिए कन्हैया से पूछा -लाला तू किसका है?
कन्हैया- माँ मै तेरा ही बेटा हूँ।
यशोदा- लोगो का कहना है कि मै और तेरे पिताजी गोरे है तो तू क्यों काला है?
कन्हैया -माँ,जन्म के समय तो मै गोरा ही था किन्तु तेरी भूल के कारण मै काला हो गया।
मेरा जन्म जब हुआ तब चारों ओर अंधेरा था और सभी नींद में डूबे हुए थे।
मै अँधेरे में सारी रात करवटे बदलता रहा सो अँधेरा मुझे चिपक गया और मै काला हो गया।
यशोदाजी भोली है सो कन्हैया की बात सच मान ली।
यशोदाजी शिचति है कि-बारह बजे तक तो मै जाग रही थी और उसके बाद न जाने क्या हुआ था।
और मैं सो गई थी,मेरी ही भूल के कारण कन्हैया काला हो गया।
ज्ञानेश्वर महाराज महाज्ञानी है। उन्होंने पंद्रह साल की उम्र में गीता लिखी थी। वे कहते है-प्रभु का शरीर तेजोमय है,पर यह जीव उनका दूर से दर्शन करता है इसलिए श्रीकृष्ण उसे-श्याम दिखते है।
एकनाथ महाराज कुछ और कारण बताते है। मनुष्य का कलेजा काला है क्योंकि उसमे काम रहता है।
श्रीकृष्ण -कीर्तन,ध्यान,धारणा,स्मरण,चिंतन करने वाले की कालिमा खींच लेते है।
वैष्णवों के ह्रदय को उज्जवल करते-करते कन्हैया काला हो गया है।