गोपियाँ आँखों में काजल लगाती है और इसलिए कन्हैया काला हो गया है।
राधा को श्रीकृष्ण ने अलग कारण बताया है-मै तो गोरा ही था परन्तु तेरी शोभा बढ़ाने के लिए मै काला हुआ।
तेरा सौंदर्य बढे और लोग तेरी तारीफ़ करे इसलिए मै काला हुआ।
अगर हम दोनों गोरे होते तो तेरी किमत कौन करता?
महाभारत के उद्योगपर्व में एक प्रसंग है।
विष्टि के हेतु आये हुए श्रीकृष्ण से दुर्योधन ने कहा -तेरे माता-पिता कौन है,यह अभी निश्चित नहीं हुआ है। नन्द-यशोदा तेरे माता-पिता है तो -वो गोरे-और-तू काला क्यों है?
श्रीकृष्ण - मै कौरवों का काल बनकर बनकर आया हूँ सो काला हूँ।
श्रीकृष्ण को काले और गोर करने की चर्चा में महात्मा लोग पागल से हुए है।
कुछ भी कारण हो पर श्रीकृष्ण काले नहीं है पर मेघ जैसे श्याम है।
ज्ञान और भक्ति को बढ़ाने वाली गोवर्धनलीला है।
जब जड़ और चेतन सभी में ईश्वर का व्यापक अनुभव हो तब ज्ञान -भक्ति बढ़ती है।
अब आती है रास-लीला।
गोवर्धनलीला में पशु-पंछी सहित सभी को प्रसाद दिया गया।
ईश्वर जगत में व्याप्त है और सारा जगत ईश्वर में समाहित।
शिवोहम.. शिवोहम। यह वेदांत की चरमसीमा है जहाँ आत्मा खुद परमात्मा बन जाता है।
किन्तु यह कहना कठिन है इसलिए महात्माओं ने कहा है -आरम्भ से ही सभी में ईश्वर को निहारो।
जड़-चेतन सभी में कृष्ण का अंश है,ऐसा अनुभव कराने के हेतु से गोवर्धन-लीला रची गई है।
इन्द्रियाँ जब ज्ञान और भक्ति की और बढ़ने लगती है,तब वासना बाधक बनती है।
वासना के वेग को हटाने के लिए श्रीकृष्ण का आश्रय लो। भगवान का आश्रय लेने से वासना के वेग को
सहन करने की शक्ति मिलती है। इस शक्ति से ज्ञान और भक्ति बढ़ती है और रासलीला में प्रवेश मिलता है।
भगवान ने गोवर्धन पर्वत हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से धारण किया था। यह ऊँगली सत्वगुण का प्रतिक है।
इंद्रियों की वासना-वर्षा के समय सत्वगुण का आश्रय लो,सदग्रंथ का सेवन करो।
सदग्रंथ और संतो का संग वासना से लड़ने की शक्ति देता है।