Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-386



दुःख में,विपत्ति में मात्र प्रभु का आश्रय लो। सभी व्रजजन ने भी अन्य देवों का आसरा छोड़कर
श्रीकृष्ण के शरण में गए और भगवान ने उनके सारे सुख-दुःख उठा लिए।

गीता में भगवान् ने कहा है - “योग क्षेम वहाम्यहम्”
जो अनन्य  प्रेम से मेरा भजन करता है और सब कुछ मुझे समर्पण करता है,ऐसे शरण में आये जीवों को
मै सांसारिक भौतिक दुःखो से मुक्त करनेका दायित्व मै स्वीकारता हूँ। उनके योगक्षेम का वहन मै करता हूँ।

गोवर्धनलीला में एक अध्भुत तत्व है। उसमे पूज्य (जिसकी पूजा होती है-ईश्वर) और पूजक(जो पूजा करे-भक्त)
एक बनते है। कन्हैया गोवर्धननाथ को वंदन करता है अर्थात  स्वयं  को वंदन करता है।
यह सोहम (सो अहम) भाव है। जीव और ईश्वर  एक बनते है।

गोवर्धनलीला से गोपियों को विश्वास हो गया कि कन्हैया ईश्वर है।
और उससे उनमे एकाकार होने की भावना जागी और रासलीला हुई।
श्रीकृष्ण का देवाधिदेवत्व सिध्ध करने के हेतु ब्रह्मा,इंद्र,वरुण आदि का प्रभाव किया गया।
ब्रह्माजी को सृष्टि के सर्जक होने का अभिमान था। भगवान् ने अनेक रूप धारण करके अपने उन रूपों से स्वयं क्रीड़ालीला करके ब्रह्माजी के अभिमान को दूर किया था। यहाँ इन्द्रका अभिमान दूर किया।

श्रीकृष्ण अवतार नहीं,अवतारी पुरुषोत्तम है।
२८ वे अध्याय में वरुणदेव के पराभव की कथा रासपंचाध्यायी से शुरू होती है।
रासलीलाके पहले आई हुई इस कथाकी महिमा विशिष्ट है।

व्रजवासी गायों की सेवा करते,एकादशी का उपवास करते,इसलिए श्रीकृष्ण का प्राकट्य भले मथुरा में हुआ पर वे गोकुल में आये है। व्रजवासी बहुत भोले थे। वे कोई योगविद्या नहीं जानते थे फिर भी उन्हें भगवान मिले है।

एक बार नंदजी भूल से मध्यरात्रि को प्रातःकाल समझकर यमुना में स्नान करने चले गए। रात्रि के ग्यारह से साढ़े तीन बजे तक के समय को आसुरी  माना गया है। उन्होंने स्नान करने के लिए जल में डूबकी मारी। आसुरी समय में स्नान करते हुए देखकर वरुणदेव के सेवक -नंदजी को पकड़ कर वरुणलोक ले गए।
सुबह जब नंदबाबा दिखाई नहीं दिए तो व्रजवासी व्याकुल हो गए।

श्रीकृष्ण को जब मालूम पड़ा तो उन्होंने अलौकिक रथ प्रगट किया और वरुणलोक में गए।
वरुणदेव ने माफ़ी माँगी और कहा की मेरे सेवक भूल से आपके पिताजी को ले आये है।
इस तरह श्रीकृष्ण नंदजी को छुड़ा कर लाये है।

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