Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-388



अज्ञान-अहंकार और वासना -वृत्तियों के आवरण का नष्ट होना ही चीरहरण लीला है
और आवरण नाश के पश्चात जीवके आत्मा का प्रभु से मिलन  है रासलीला।

भगवान् कहते है - जिसने अपनी बुध्धि मुझमे स्थापित की है उनके भोगसंकल्प,
सांसारिक विषय-भोग के लिए नहीं होते। वे (भोग) संकल्प मोक्षदायी होते है।
जैसे,भुने हुए धान्य का बीजतत्व नष्ट हो जाता है और कभी अंकुरित नहीं हो पाता ।
इसी प्रकार जिसकी बुध्धि में काम-वासना का अंकुर उजड़ गया है,वहाँ वह फिर से अंकुरित नहीं हो पाएगा।

जीव ईश्वर का मिलन कब होता है?
पहले पूतना वध - अविद्या(अज्ञान)का नाश।
अविद्या नष्ट होने से जीवन की गाड़ी राह  पर आती है और शकटासुर का नाश होता है।
जीवन सही रास्ते पर चलने लगा तो तृणावर्त-रजोगुण नष्ट हो गया और सत्वगुण बढ़ने लगा।
रजोगुण नष्ट  हुआ तो माखनचोरी की लीला आई। श्रीकृष्ण मन की चोरी करते है,तब जीवन सात्विक बनता है।
जीवन सात्विक होने पर आसक्ति की मटकी फूट जाती है।
दही की मटकी - संसार-आसक्ति की मटकी कन्हैया ने फोड़ दी।

संसार की आसक्ति नष्ट हुई तो प्रभु जीवके पाशसे बंध  गए। यही है दामोदर लीला।
प्रभु बांध चुके तो दम्भ-बकासुर और पाप-ताप अधासुर का वध हुआ।
सांसारिक ताप नष्ट हुआ तो दावाग्नि नष्ट हुई,शान्त हो गई। अतः इन्द्रियाँ शुध्द हुई,
अंतःकरण की वासना का क्षय हुआ। यही है नागदमन लीला और प्रलम्बासुर वध की कथा।

जीव  ईश्वर से मिलने योग्य हुआ तो कृष्ण की वेणुगीत की बंसरी(नादब्रह्म) सुनाई दी।
फिर आई गोवर्धनलीला। गो- इंद्रियों का संवर्धन हुआ,पुष्टि हुई तो भक्ति-रस उत्पन्न हुआ।
इंद्रियों की पुष्टि होने पर षडरस का और वरुणदेव का पराभव हुआ।

षडरस का पराभव होने पर जीव  शुध्ध होने को आया,तो आई चीर-हरण-लीला।
अहंकार,अज्ञान और वासना के आच्छादन को भगवान ने मिटा दिए।
रासलीला में स्त्री और पुरुष का मिलन  नहीं है परन्तु पुरुषोत्तम के साथ जीव  का शुध्ध मिलन है।

वासनारूपी वस्त्र जीव और परमात्मा के मिलन का बाधक है।
इंद्रियों में से काम हटाना सरल है किन्तु बुध्धिगत काम को निकालना कठिन है।

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