पर अभी भी कामदेव(कंदर्प-देव) में गर्व रह गया है कि वे सबसे बड़े देव है।
संस्कृत में काम का नाम है मार। समय आने पर काम सभी को मारता है।
कामदेव ने श्रीकृष्ण के पास आकर कहा -नाथ-आपकी और मेरी कुस्ती (युध्ध) हो
और उससे साबित होगा कि कौन बलवान है।
कृष्ण ने कहा - क्या तू भूल गया कि शिवजी ने तुझे भस्मीभूत किया था?
कामदेव- शिवजी समाधिस्थ थे और तेजोमय ब्रह्म का चिंतन कर रहे थे। उस समय मै समयका विचार किये बिना गया था और जल के भस्म हो गया। समाधिमें -मुझे मारे उसमे कोई आश्चर्य नहीं है।
श्रीकृष्ण -रामवतार में भी तू हार गया था।
कामदेव- आपने उस समय मर्यादा का पालन करके मुझे हराया था।
उस अवतार में आप एक पत्नी व्रत का पालन करते थे सो मै हार गया था।
श्रीकृष्ण - बोल,अब तेरी क्या इच्छा है?
कामदेव -शरद ऋतु की पूर्णिमाकी रातको आप सर्व मर्यादाको छोड़कर वृन्दावनमें अनेक स्त्रियों के साथ विहार करो और मै आप पर तीर चलाऊ। यदि आप निर्विकारी रहेंगे तो विजय आपकी होगी,आप ईश्वर।
और अगर आप कामाधीन हुए तो मेरी जीत ,मै ईश्वर।
श्रीकृष्ण -तेरी यही इच्छा है तो वैसा ही होगा।
कामदेव ने सोचा था कि कृष्ण को हराना बहुत आसान है
क्योकि वे सारा दिन गोपियों के साथ मुक्त सहचार करते है।
श्रीधर स्वामी "रासलीला" को "कामविजय" लीला कहते है।
वे कहते है कि कामदेव आकाश में खड़े है और श्रीकृष्ण को तीर मारते है पर श्रीकृष्ण को कुछ नहीं होता।
वे निर्विकार है। कामदेव की हार हुई है। उन्हें अब ज्ञात हुआ है कि श्रीकृष्ण देव नहीं ईश्वर है।
भगवान ने कामदेव का पराजय किया है।
इस तरह रासलीला "मदन मानभंग लीला"है। काम का पराभव करने के लिए है।
श्रीकृष्ण का नाम रखा गया - "मदनमोहन" श्रीकृष्ण- तो- "योगयोगेश्वर" है।
रासलीला में ईश्वर ने बोध दिया है कि काम मेरे आधीन है,मै काम का आधीन नहीं हूँ।
श्रीकृष्ण का दूसरा नाम है"अच्युत"
रासलीला में कई बार शुकदेवजी यह नाम बोले है। विष्णु सहस्त्र नाम में भी यह नाम दो-तीन बार आया है।