Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-394



देवी भागवत में व्यासजी ने अपनी बात (कथा) कही है।
एक शुद्र मत्स्यगंधा को देख पराशर कामाधीन हुए। उन्होंने अपने तपोबलसे सूर्यको आवृत करके अन्धकार किया। पराशर सूर्य को तो ढंक सकते थे किन्तु अपने काम को न रोक सके।
काम को जीतना दुष्कर कार्य है। काम को मारकर उसका पराभव करे वह ईश्वर है।

इस रासलीलाका चिंतन  करनेसे काम-वासना नष्ट होती है।
इस लीला में जीव और ईश्वर के मिलन का निरूपण है। यह मिलन उच्च कक्षा का है।

श्रीधर स्वामी कहते है -जीव मात्र की ओर  प्रभु का यह आवाहन है।
प्रभु बाँसुरी बजाकर जीव को बुलाते है और कहते है -"तेरा सच्चा पति-पिता मै हूँ,तू मेरे पास आ"
रासलीला अनुकरणीय नहीं पर चिंतनीय है।

रासलीला के पाँच अध्याय पंचप्राणों के सूचक है।
पंचप्राणों का ईश्वर के साथ रमण ही रास है।

शरद पूर्णिमा के रात्रि है। प्रभु ने सुन्दर श्रृंगार किया है और बाँसुरी बजा  रहे है।
जो जीव का अन्तिम जन्म था उसे प्रभु ने अपनाया था।
जो जीव परमात्मा को मिलने के लिए लायक था उस जीव को बाँसुरी (नाद ब्रह्म) सुनाई दी।

वेणुगीत की बाँसुरी सब को सुनाई देती है
किन्तु रासलीला की बाँसुरी तो ईश्वर मिलनातुर अधिकारी जीव-गोपी को ही सुनाई देती है।

जिनका चित्त श्रीकृष्ण ने हर लिया था वे व्रज की गोपियाँ बांसुरी सुनकर आतुरतापूर्वक श्रीकृष्ण को मिलने दौड़ी है। वेअपने सांसारिक कार्यों को छोड़कर कृष्ण को मिलने दौड़ी है।
वे अपनी सखियों को भी बुलाने के लिए रूकती नहीं है।

गोपियों का कृष्ण-मिलन की उत्सुकता का वर्णन करते हुए शुकदेवजी कहते है -
कई गोपियाँ जो गायों को दुह रही थी,वे बाँसुरी का आवाज सुनकर काम छोड़कर दौड़ी है।
जब देहाध्यास छूट जाता है,तब ऐसी दशा होती है।

एक गोपी श्रृंगार कर रही थी और बांसुरी की आवाज़ सुनी तो
व्याकुलता में चन्द्रहार गले में पहनने के बदले हाथ में पहनकर दौड़ी है।
दूसरी गोपी घर की लिपाई-पुताई करती गोबर के गंदे हाथों सहित कृष्ण को मिलने दौड़ी है।

सामान्यतः स्त्रियाँ बन-ठन कर आईने में देखे बिना घर से बाहर नहीं जाती है।
पर यहाँ तो गोपियों कप देहाध्यास का ख्याल ही नहीं है। ईश्वर को मिलने के लिए ऐसी व्याकुलता होनी चाहिए।

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