Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-395



रामकृष्ण परमहंस सदृष्टांत बाते करते थे।
एक शिष्यने अपने गुरु से पूछा-ईश्वर प्राप्ति के लिए जिज्ञासा और व्याकुलता कैसी होनी चाहिए?
गुरूजी- यह विषय वर्णन का नहीं,शब्दातीत अनुभव का है। कोई प्रसंग आने पर यह बात समझाऊँगा।

एक बार गुरु-शिष्य दोनों नदी में स्नान करने गए।
जैसे ही शिष्य ने पानी में डूबकी मारी कि गुरु ने उसका मस्तक बल से पानी में धँसा दिया।
साँस लेने में तकलीफ होने लगी तो शिष्य छटपटाने लगा,बाहर निकलने के लिए व्याकुल हो गया।
तब,गुरु ने उसका मस्तक छोड़ दिया। शिष्य पानी से बहार निकला।
गुरु ने पूछा- कैसा रहा अनुभव?
शिष्य - अरे,मेरे तो प्राण ही निकले जा रहे थे। ऐसा लग रहा था कि  प्राण छूट जायेंगे।
गुरूजी- हाँ,ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भी ऐसा ही छटपटाना,तड़प,व्याकुलता की आवश्यकता है।
ऐसा होने पर ही ईश्वर प्राप्त होंगे।

मीराबाई को भी ऐसी ही व्याकुलता थी,और वे कहती है -
"तुम देख्या बिन कल न परत है,तड़प-तड़प जीव जासी "
"श्याम बिना जियडो मुर्जावै जैसे जल बिना बेली"

रासलीला कोई साधारण स्त्री की नहीं,देहभान भूली हुई,देहाध्यास से मुक्त गोपियों की कथा है।
देहाध्यास नष्ट होने पर प्रभु की चिन्मयी लीला में प्रवेश मिलता है।

भागयशाली वह है जो सांसारिक सुखोको और काल (समय-या मृत्यु) के डरको छोड़कर(गोपियों की तरह)
भगवान् की ओर जाता है। तब,ईश्वर उनका स्वागत करते है।
इसलिए भगवान् एक-एक गोपियों का स्वागत करते हुए कहते है-"स्वागतम महाभागा"
'हे भाग्यशाली स्त्रियों आओ" भगवान ने गोपियों को (महाभाग्यशाली)से सम्बोधन किया है।

बड़े बंगले में रहे,कार में या प्लेन में घूमे,वह भागयशाली नहीं है।
जिसे सिर पर काल (मृत्यु) है वह कहाँ भाग्यशाली?
जिसे काल का डर नहीं है,जो परमात्मा के प्रेम  में पागल बने और उसके पीछे दौड़े वह भाग्यशाली है।
भले दौड़ कर मत जाओ,पर धीरे-धीरे संयम और भक्ति से प्रभु-प्रेम को बढ़ाओ।

श्रीकृष्ण ने गोपियों से पूछा -तुम दौड़ती हुई क्यों आई हो ? क्या व्रज में कोई संकट आया है?
बताओ मै क्या मदद करू? रात्रि के समय इस घोर जंगल में स्त्री का रहना ठीक नहीं है।
क्या वृंदावन की शोभा निहारने आई हो? शोभा निहार कर जल्दी घर वापस लौटो।
तुम्हारे पति,सन्तान आदि प्रतीक्षा करते होंगे।

अंतर्मुख दृष्टि  करके जीव जब भगवान के पास पंहुचता है तो वे उससे पूछते है -मेरे पास क्यों आया है?
संसार में रत रह,वहाँ तुम्हे सुख मिलेगा। मै सुख नहीं केवल आनंद ही दे सकता हूँ।
तुम सब वापस जाओ। वहाँ सब (कुटुंब-वाले) तुम्हारी प्रतीक्षा करते होंगे।

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