Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-401



जीव और ईश्वर के मिलन का वर्णन कौन कर सके? शायद महात्माओं उसका अनुभव कर सके।
श्रीकृष्ण को भी आनंद हुआ है। जीव -ईश्वर का मिलन होने से परमानन्द हुआ है।

ब्रह्मसे जीवका मिलन हुआ है,ब्रह्म और जीव एक बने है,द्वैत से अद्वैत हुआ है।
और,इस प्रकार अद्वैत सिध्धांतके आचार्य शुकदेवजीने रासलीला में अद्वैत सिध्ध  किया है।

रास में साहित्य,संगीत-और- नृत्य का समन्वय होता है। इस रासलीला में कामका अंश मात्र भी नहीं है। ब्रह्मा,देव,गन्धर्व,नारदजी आदि ने भी आकाशसे इस लीलाको निहारा।
निहारते-निहारते ब्रह्माजी सोचने लगे कि कृष्ण और गोपियाँ निष्काम है
फिर भी,देहभान भूलकर इस प्रकार पराई नारी से लीला करना शास्त्र मर्यादा का भंग ही है।
कृष्णावतार धर्म मर्यादा के पालन के लिए है,स्वेच्छाचार करने के लिए नहीं।

ब्रह्माजी रजोगुणके प्रतिष्ठाता देव है। जिसकी  आँखों में रजोगुण है,वह हर कहीं ऐसा ही देखता है।
श्रीकृष्ण इधर सोच रहे है कि- इस बूढ़े को धर्म मैंने ही सिखाया था और अब आज वह मुझे ही सिखाने जा रहा है। क्या,ब्रह्मा यह नहीं जानते कि यह रासलीला "धर्म" नहीं "धर्म का फल" है।

प्रभु ने एक और खेल किया। सभी गोपियोंको अपना स्वरुप दे दिया। अब कृष्ण ही कृष्ण दिखाई दे रहे थे।  
अब,गोपी नहीं थी। सभी पीताम्बर-धारी  कृष्ण हए है-औेर एक दूजेसे रास खेल रहे  है।
पारसमणि लोहे को सोना बना सकती है, पर लोहेको अपनी तरह पारसमणि नहीं बना सकती।
परन्तु परमात्मा जो जीव  से मिलते है उसे अपना जैसा बना लेते है।

ब्रह्माजी ने अब मान लिया कि यह स्त्री-पुरुष का मिलन नहीं है। श्रीकृष्ण ही गोपी रूप हुए है।
ब्रह्माजी ने श्रीकृष्ण को प्रणाम किया।
श्रीकृष्ण देव नहीं पर देवों के देव है। परमात्मा है। ब्रह्माजी का अभिमान उतरा है।

यह लीला अटपटी है।
इस लीला का रहस्य श्रीकृष्ण की कृपा के बिना नहीं समझा जा सकता।
शुध्ध जीव का “ब्रह्म” के साथ रमण वही रास है। “ब्रह्म” का “ब्रह्म”के साथ विलास ही रास है।

यदि यह रासलीला में लौकिक कामाचार होता तो देवगण उसे निहारने नहीं आते।
यह रासलीला खुल्ले मैदान में हुई है। बंद कमरे में नहीं।

भागवत के श्रोता है परीक्षितजी। जो मृत्यु के किनारे बैठे है। उन्हें सात दिनों में मुक्ति दिलानी है।
उसे लौकिक काम की बाते नहीं सुननी। शुकदेवजी कथा कर रहे है। शुकदेवजी -वैसे है-कि-
जिनकी दृष्टि-मात्र से अप्सराओं के काम का नाश हुआ है। वे पूर्ण निर्विकार और निष्काम है।
अरे,जिनकी लंगोटी भी छूट गई है ऐसे महायोगी यह कथा कर रहे है।
जो रासलीला में लौकिक काम हो तो शुकदेवजी यह कथा नहीं करते।

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