Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-408



गोविन्द दामोदर स्तोत्र में कहा है -सुखावसाने,दुःखावसाने और देहावसाने
ऐसे-तीन बार स्तुति करो।
गोपीगीत के छंद का नाम कनकमंजरी है। कई आचार्य कहते है -गोपीगीत में “इंदिरा छंद” है।
इन्दिरा यानि लक्ष्मी। गोपियाँ लक्ष्मी स्वरुप है। इसलिए गोपीगीत में इंदिरा छंद है।

प्रत्येक श्लोक बोलने वाली गोपी अलग-अलग है,पर वियोग सभी गोपियों का एक ही है।
वियोग में एक ही भाव है इसलिए छंद एक ही है।

गोपियों को श्रीकृष्ण के दर्शन की आतुरता जागी है। वे कहती है -हम सब कुछ छोड़कर आपके पास आई है
और आपने हमारा त्याग किया है। नाथ हमे दर्शन दो।
गोपियों को मरने का डर नहीं है। वे निर्विकार-निष्काम है।
उनका विश्वास है कि अगर वे मरेगी  तो श्रीकृष्णके चरण में ही जायेगी। गोपी का मृत्यु  वह है प्रभु से  मिलन।

गोपीको  सिर्फ एक ही डर है कि -अगर श्रीकृष्ण के विरहमें मेरे  प्राण जायेंगे तो ठाकोरजी को परिश्रम होगा। श्रीकृष्ण की कीर्ति को कलंक लगेगा। मेरे श्रीकृष्ण की कीर्ति को अपयश नहीं देना है।
मै श्रीकृष्ण के दर्शन करके ही मरूँगी।

गोपी कहती है -कन्हैया हम तो केवल तेरे लिए ही जी रही है। तेरे बिना काल हमे सताता है।
नाथ,वैसे तो हमे कोई गरज नहीं है फिर भी शरणागत की रक्षा करना क्या तुम्हारा कर्तव्य नहीं है?
अगर आप हमारी रक्षा नहीं करेंगे तो फिर जगत में हमारा कौन है?आप हमारी उपेक्षा मत करो।
सर्व में हम आपको ढूँढते है। जो आपको ढूँढे वह जंगल में भटके वह ठीक नहीं है।

ईश्वर की  शरण में जाना वह जीव का धर्म है। शरण में आये जीव  की रक्षा करना वह ईश्वर का धर्म है।
यहाँ गोपियाँ ईश्वर के शरण में गई और सर्व में ईश्वर को ढूंढती है।

इस जगत में कई जीव ऐसे है जिन्हें परमात्मा की जरुरत नहीं लगती। वे मात्र धन,संपत्ति,स्त्री आदि को खोजते है। गोपी कहती है - हम तो आपको खोज रहे है। जो आपको खोजे उसकी ऐसी दुर्दशा हो वह ठीक नहीं है।
आप जगत को प्रेम  का दान देने आये है तो फिर प्रेममार्ग को छिन्न-भिन्न मत करो।

भक्तिमार्ग में जो परमात्मा की इच्छा वह मेरी इच्छा -ऐसा होता है। पर यहाँ गोपी की स्थिति उससे भी पर है।
यहाँ गोपी “प्रेमरूपा” है। वे ऐसा ही मानती है कि श्रीकृष्ण हमारी इच्छा से ही चलते है।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE