वे तो योगी,ज्ञानी या कर्मनिष्ठ होंगे। उनको तो किसी न किसी साधनका अवलंबन है और हम तो निरावलंबा है।
हम तो तेरे ही सहारे है। हम तो गाँव की अनपढ़ गोपियाँ है। तू ही हमारा आधार है।
हम गाँव की अनपढ़ अबला तेरी शरण में आई है। हम निः साधन है,तुम पर पहला अधिकार हमारा है।
सभी साधन करने पर भी जिसे साधन का अभिमान न हो,वही निःसाधनभक्त है।
साधन करो किन्तु ह्रदय से नम्र बनो।
गोपी गीत के अंत में श्रीकृष्ण प्रकट हुए है।
प्रभु बोले -मै तुम्हारा प्रेम जानता हूँ। भगवान के ऐसे वचन सुनकर गोपियो को खूब आनंद हुआ है।
श्रीकृष्ण गोपियों के साथ खेलते है और उसी समय कामदेव ने तीर मारा है,पर कामदेव के हार हुई है।
कामदेव ने साष्टांग प्रणाम किया है और अपनी हार स्वीकार की है।
श्रीकृष्ण गोपियो से कहते है-मै तुम्हारा जन्मोजन्म का ऋणु हूँ। तुम्हे प्रेम का बदला मैं दे नहीं सकता।
तुमने मेरे लिए गृहस्थी की बेड़िया तोड़ दी है,जिसे योगी भी तोड़ नहीं सकते।
तुम्हारे साथ का यह मिलन निर्मल और सर्वथा निर्दोष है।
भगवान रामावतार में हनुमानजी के ऋणी है,और कृष्णावतार में गोपियों के ऋणी है।
रामचंद्रजी ने हनुमानजी से कहा है -तेरे एक-एक उपकार के बदले में प्राण दू,पर तेरे उपकार अनेक है,
और मेरे प्राण तो एक ही है। मै तेरे उपकारों का बदला नहीं दे सकता।
यहाँ श्रीकृष्ण गोपियों के ऋणी है तभी तो वृंदावन छोड़कर जा नहीं सकते।
द्वारिकालीला में मर्यादा है। गोकुललीला में प्रेम है।
रास-लीलामें -प्रभु ने गोपियों को परमानन्द का दान दिया है। गोपियाँ कृतार्थ हुई है।
श्रीकृष्ण जब तक गोकुल में रहे तब तक उन्होंने सिले हुए कपडे नहीं पहने है।
दूसरे गरीब गोपबालकों को सिले हुए कपडे पहनने नहीं मिलते इसलिए वे खुद कैसे पहन सकते ?
श्रीकृष्ण का मित्र-प्रेम अलौकिक है। उनके मित्र काली कम्बल ओढ़ते थे इसलिए वे भी ओढ़ते थे
और काली कम्बल साथ लेकर घूमते है। इसलिए कन्हैया को कई लोग काली कमली वाला कहते है।
श्रीकृष्ण ने गोकुल में अनेक राक्षसों को मारा है,पर शस्त्र से नहीं।
गोकुल में उन्होंने शस्त्र नहीं लिया है। फक्त बंसी धारण की है और बजाई है।
वह बंसी इतनी मधुर है कि जो कोई उसे सुनता है, वह हमेशा के लिए उसका गुलाम हो जाता है ।
गोकुल के श्रीकृष्ण परम-प्रेम के स्वरुप है। इस तरह गोकुल-लीला और वृंदावन की लीला शुद्ध प्रेम लीला है।