महात्मा रंग-आकृति नहीं-पर (परमात्माकी) कृति देखते है। आकार मन में विकार उत्पन्न करता है।
संसार के,शरीर के सौंदर्य का चिंतन करने से मन चंचल हो।
परमात्मा के सौंदर्य का विचार करने से मन शान्त होता है।ईश्वर के सौंदर्य की कल्पना से भक्ति शुरू होती है।
प्रभु को प्रसन्न करने का साधन दीनता है। और यह है विद्याधर की कथा का रहस्य।
इसके बाद श्रीकृष्ण ने शंख चूड़ का वध किया उसकी कथा है।
इस तरफ नारदजी कंस राजा के घर गए और कंस के पास जाकर कहा - तू बहुत भोला है।
इस वसुदेव ने तेरे साथ कपट किया है। वह अपने आँठवे पुत्र को नंदजी के पास छोड़ आये और
नंदजी की पुत्री को यहाँ ले आये है। श्रीकृष्ण देवकी का पुत्र है और बलराम रोहिणी का।
उन दोनों ने मिलकर तेरे कई सेवकों को मार डाला है।
कंस ने जब यह सुना तो आगबबूला हुआ और वसुदेव को मारने के लिए तैयार हो गया।
नारदजी आग लगाना भी जानते है और बुझाना भी।
वे कंस को समझाने लगे-वसुदेव को मारने से क्या लाभ होगा ? तेरा काल तो श्रीकृष्ण है।
यदि तू वसुदेवको मारने जायेगा तो कृष्ण समाचार मिलते ही भाग निकलेगा। सो तू कृष्णको ही मारनेकी सोच।
नारदजी वहाँ से गोकुल में श्रीकृष्ण के पास आये। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा -मै सब तैयारी करके आया हूँ।
अब तुम कंस को मारो और मथुरा के राजा बनो।
जब आप द्वारका के राजा बनोगे तब तुम्हारा घर संसार देखने आऊँगा। नारायण,नारायण।
कंस सोचने लगा की कृष्ण को कैसे मारा जाए। उसने पंडित को बुलाया। पंडितजी ने कहा आप धनुष्य यज्ञ करो,उससे आयुष्य बढ़ती है,और शत्रुओं का विनाश होता है। पाँच दिन का यह यज्ञ अगर निर्विघ्न पूरा हो तो यजमान की आयुष्य बढ़ती है,और अगर विघ्न आये तो यजमानकी मृत्यु निश्चिन्त है।
उस समय कंस के कुछ मल्ल चाणुर और मुष्टिक वहाँ आये।
उन्होंने कहा-ग्यारह साल का लड़का आपको क्या मारेगा? तुम्हारे काल के काल को भी हम मारेंगे।
आप एक बार उसे मथुरा में बुलाओ। हमारे पास ग्यारह हज़ार हाथीका बल है। हमारा वजन वह सह नहीं पाएगा।
कंस ने सोचा-इस यज्ञ के बहाने नंदबाबा को बलराम और श्रीकृष्ण सहित मथुरा में आनेका आमंत्रण दूँगा।
नन्दजी मथुरा आयेंगे और मेरा कुवलयापीड़ हाथी अपने पैरों तले कृष्ण को कुचल डालेगा।
और अगर बच भी गया तो मेरे मल्ल उसे अखाड़े में ले जाकर मार डालेंगे।