कंस ने यज्ञ के नाम से यह षड्यंत्र रचा है। और अपने मल्लों से कहा कि कृष्ण जब यहाँ आये तो उसे मार डालना। वह मेरा काल है। उसके हाथों मेरी मृत्यु है। एक बार वह मर जाए फिर मैं सुख से जी सकूँगा।
काल के समीप आने पर पुण्यशाली,पुण्य कार्यो में जुट जाता है और पापी क्रोधित हो जाता है।
कंस सोचता है कि -नन्दबाबा को आमंत्रण देने किसे भेजू? उनकी नज़र अक्रूर पर पड़ी।
अक्रूर वृद्ध है,मेरे साथ विश्वासघात नहीं करेंगे। और नन्दबाबा भी उस पर विश्वास करेंगे।
अक्रूर कौन? जो क्रूर नहीं है वह अक्रूर।
जो क्रूर है वह श्रीकृष्ण को नहीं ला सकते। जिसका मन अक्रूर है वह भगवान को अपने साथ ला सकता है।
कंस ने अक्रूरजी को बुलाया और कहा -चाचाजी,आपको एक काम करना है।
नारदजी ने कहा है कि श्रीकृष्ण ही देवकी का आठवाँ पुत्र है जो मुझे मारने वाला है।
मैं अपने इस काल को मारना चाहता हूँ।
आप नन्दबाबा को धनुष्य-यज्ञ में बलराम-श्रीकृष्ण सहित पधारने का आमंत्रण देने जाओ।
मैंने मेरे काल को मारने का यज्ञ के बहाने यह षड्यंत्र रचा है।
जब तक मेरा काल जीवित है मै चैन से जी नहीं सकता।
हाँ ,किसी को इस बात का पता लगे कि मै उसे मारना चाहता हूँ। मेरा यह छोटा सा काम आप कर दो।
अक्रुरजी ने कहा -सोचना मनुष्य के हाथ की बात है,पर वह सफल हो या न हो वह ईश्वर पर आधार है।
प्रारब्ध अनुकूल हो,परमात्मा की कृपा हो -तो ही विचार सफल होता है।
पर आपकी आज्ञा है तो मै कल गोकुल जाऊँगा।
अक्रुरजी घर लौटे है। सारी रात नींद नहीं आई। वे श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए व्याकुल थे।
प्रातःकाल में अक्रुरजी सन्ध्यादि कर्मो से निवृत हुए है। कंस ने सुवर्ण का रथ भेजा है।
रथ पर सवार होकर अक्रुरजी गोकुल की ओर निकले है। रास्ते में वे श्रीकृष्ण के ही विचार करते जा रहे थे।
मेरा भाग्य उदित हुआ कि आज भगवान् के दर्शन होने जा रहे है।
मै अधम, पापी,अपात्र आपकी शरण में आ रहा हूँ। मुझे अपनाकर मेरा जन्म सफल कीजिये।
रास्ते में अक्रुरजी परमात्मा का स्मरण करते हुए अपने भाग्योदय के बारे में सोचते जा रहे है।
मुझ जैसे कामी को भगवान् के दर्शन कैसे हो सकते है?
किन्तु कृष्ण ने मुझे अपनाया है इसलिए कंस ने मुझे भेजा है।
लगता है शाम के समय गौशाला में कन्हैया के दर्शन होंगे। वे वही गोपालों के साथ होंगे।
पहले बलराम को वंदन करूँगा और कृष्ण से कहूँगा,
हजारों वर्षो से बिछड़ा हुआ मेरा जीव आज आपसे मिल पाया है।