Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-415



अक्रुर सोच रहे है-हे नाथ,इस जीवको अपना लो। एक बार इस अधम जीव  पर कृपा करो।
एक बार कह दीजिए कि तू मेरा है।
मेरे भगवान् की दॄष्टि तो प्रेम से भीगी हुई है। उनके स्नेह भरे नयन मुझे पवित्र कर देंगे। जब मै वंदन करूँगा,
तो वे मुझे कृपा दृष्टि से देखेंगे। मेरी ओर देखकर मेरे मस्तक पर अपना वरद  हस्त पधरायेंगे।

अक्रूरजी ऐसी कल्पना में डूब गए कि मन-ही-मन उन्होंने मान लिया कि वे गोकुल पहुँच गए है और श्रीकृष्ण उनके मस्तक पर हाथ फेर रहे है। ऐसा सोचकर स्वयं अपना हाथ अपने सर पर रख दिया।

प्रभु स्मरण में ऐसी एकाग्रता होगी तभी प्रभु  प्रसन्न होंगे।
पवित्र विचार करते रहने से ही जीवन सफल होता है।
मनुष्य सोचता है कि दो साल व्यापार अच्छा चलेगा तो मोटर लूँगा और बंगला बनाऊँगा।
केवल सुखोपभोग के विचार कनरे वाले की आत्मशक्ति नष्ट होती है।
पवित्र विचार करने वाले का ह्रदय पवित्र होता है। आत्मा में जो शक्ति है वह परमात्मा की है।
(आत्मा और परमात्मा एक है)
इसलिए कहा गया है -”तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु।”  (मेरा मन शुभ संकल्प करे।)

वेदान्त कहता है -कोई भी विचार किये बिना मनको संकल्प बिना का बनाओ तो ही शांति मिलेगी।
कोई भी संकल्प किये बिना शान्ति से बैठो तो मन की शक्ति बढ़ती है,और फिर प्रकाश दिखता है।
लेकिन मन संकल्प किये बिना नहीं रहता।
इसलिए भक्तिमार्ग के आचार्य कहते है -संकल्प करो तो भगवान् के लिए ही करो।

रोज ऐसी भावना रखो कि प्रभु अपना वरद हाथ मेरे मस्तक पर रखे।
प्रभु ने अब तक अक्रूरजी  के मस्तक पर हाथ नहीं रखा है,
पर अक्रूरजी अभी भी  शुभ संकल्प करते है और उनके सभी शुभ संकल्पों को प्रभु ने पूर्ण किया है।

अक्रूरजी सोचते है कि कन्हैया उन्हें नाम लेकर पुकारेगा भी या नहीं।
वैसे तो मै पापी हूँ,अधम हूँ,उम्र में वृध्द हूँ इसलिए प्रभुजी मुझे नाम  से नहीं पर “चाचा”कहकर पुकारेंगे।
और जब मुझे मेरे भगवान “चाचा”कहकर बुलायेंगे तो मै धन्य हो जाऊँगा।
यदि वे मुझे चाचा कहकर उठने को कहेंगे तभी मै उठूँगा और मेरा जन्म सफल हो जायेगा।

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