Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-416



भगवान जिसका आदर नहीं करते उसका जीवन वृथा है। जीव मात्र मान का भूखा है।
पर,जगत की बातो पर ध्यान मत दो। कोई प्रशंसा करेगा तो सदभाव जागेगा और कटु बोलेगा तो कुभाव।
सो लोगो की कहने की चिंता छोड़कर,भगवान् क्या कहेंगे,उसकी चिंता करो।
भगवान हमसे  सदभाव की अपेक्षा करते है।
वे सोचते है कि इस जीव ने पंद्रह दिन तक कथा सुनी है तो उसके मन का कुछ सुधार होगा।

अक्रूरजी भगवान के साथ सम्बन्ध जोड़ते है। “श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव का मै पित्राई भाई हूँ।मैं चाचा हु"
महात्मा  लोग कहते है कि- ईश्वर के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध जोड़ो।
परमात्मा के साथ  सम्बन्ध जोड़ने से उनपर प्रेम होगा।
भगवान  को पिता मानो,सखा मानो,स्वामी मानो,पुत्र मानो-कुछ न कुछ सम्बन्ध जोड़ने से वे अपने लगेंगे।

परमात्मा श्रीकृष्ण के साथ सम्बन्ध जोड़ने से अंतकाल में खूब शान्ति मिलती है। अंतकाल में परमात्मा लेने आते है। जगत के साथ सम्बन्ध जोड़ने से अंतकाल में घबराहट होती है कि अब मै कहाँ जाऊँगा?

कई बार ऐसा भी,होता है कि लाखों की संपत्ति का वारिस पुत्र धन बटोर कर चला जाता है।
जबकि प्रभुजी ऐसा नहीं करते। वे कभी विश्वासघात नहीं करते। वे तो मानव के अंतकाल में दौड़ते हुए आते है।
जीव तो जीव के विश्वास का घात करता है,प्रभु ऐसा नहीं करते।
जीव जिस भाव से श्रीकृष्ण का स्मरण करता है,उसी भाव से वे आते है।

गीता में भगवान कहते है -तू जिस भाव से (या किसी भी भावसे) भजे किन्तु मुझे भजता रहे।
स्त्री-पुत्रादि का भजन कोई काम नहीं आएगा। अपने परिवार के लिए तो कौआ और कुत्ता भी जीता  है।
जो ईश्वर के लिए जीता है उसी का जीवन सार्थक माना जायेगा।

अक्रूरजी मन में भाँति-भाँति की कल्पना करते जा रहे है।
जिस मार्ग से श्रीकृष्ण गायें चराने जाते है, रथ वहाँ आकर रुका है। अक्रूरजी ने श्रीकृष्ण के चरणचिन्ह देखे।
यदि मेरे मालिक खुल्ले पॉँव घूमते है तो मै उनका सेवक हूँ,रथ में कैसे बैठ सकता हूँ?
मुझे रथ पर सवार होने का क्या अधिकार है? ऐसा सोचकर वे पैदल चलने लगे।
गोकुल पँहुचकर वहाँ की रज सारे शरीर पर उन्होंने अंचित कर ली।
व्रजरज की बड़ी महिमा है  क्योकि वह प्रभु के चरणों से पवित्र हुई है।

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