Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-418

श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी के मस्तक पर हाथ पसारते हुए कहा,चाचाजी अब उठिये। उनको उठाकर आलिंगन दिया। जीव  जब शरण में आता है तो भगवान उसको अपनी बाँहो में भर लेते है।
आज जीव  भगवान् की शरण में आया है। भगवान ने अक्रुरजी की सभी मनोकामना संतुष्ट की।

गौशाला से सब नंदजी के घर पर आये है। नंदजी ने अक्रुरजी का स्वागत किया।
भोजनादि से निवृत होने पर नंदजी अक्रूरजी से आगमन का कारण पूछा। अक्रुरजी ने सारी  हकीकत कही। नंदबाबा बहुत भोले थे। वे आमंत्रण पाकर खुश हुए।
मै कंस को कर देता हूँ सो मेरे बेटों के लिए सुवर्ण का रथ भेजा। कंस को मेरे कन्हैया पर कितना प्रेम है।

नंदबाबा क्या जाने कि विश्वास उत्पन्न करने के हेतु से कंस ने सोने का रथ भेजा है। वे कंस  के कपट को नहीं जानते। वे बोले-मेरी भी इच्छा थी अपने पुत्रों को कभी मथुरा दिखाऊँ। एक भूदेव ने कहा था कि-
ग्यारह साल के बाद लाला का भाग्योदय है। नंदबाबा ने आज्ञा की- मथुरा जाने की तैयारी करो।

ग्वाल मित्रों को जब पता चला कि कन्हैया मथुरा जा रहा है तो उन्होंने नंदबाबा को आकर कहा-
बाबा,हम भी साथ चलेंगे। हम नहीं होंगे तो कन्हैया की देखभाल कौन करेगा?
वे मानते थे कि  कन्हैया को वे ही संभाल सकते है। जगत की देखभाल करने वाले की आज बालक दे
खभाल करने चले है। नंदबाबा ने सभी बालकों को साथ चलने की अनुमति दी।

सभी को खुशी हुई है पर जब यशोदाजी ने सुना कि कन्हैया मथुरा जानेवाला है तब उन्हें अति दुःख हुआ।
"यह अक्रूर,अक्रूर नहीं,क्रूर है। कंस कपटी है। उसने कपट से सोने का  रथ भेजा है। मेरे लाला को मत ले जाओ। वह चला जायेगा तो गोकुल उजड़ जायेगा। वह नहीं  होगा तो गाये भी खाना-पीना छोड़ देगी।
यदि ले जाना हो तो बलराम को ले जाओ,पर मेरे कन्हैया को नहीं। मुझे वह प्राण से भी ज्यादा प्यारा है।
उसे देखे बिना मुझे चैन नहीं पड़ता।

मुझे ऐसा लगता है कि मेरा लाला  मुझे छोड़कर हमेशा के लिए मथुरा जा रहा है।
मैंने सुना है कि मथुरा की स्त्रियां जादूगरनी है। मेरे लाला पर काला जादू करेगी तो वह कभी वापस नहीं आएगा। वहाँ उसकी देखभाल कौन करेगा? वह बड़ा शर्मीला है। भूखा होने पर भी कुछ माँगता नहीं है।
उसे मनाकर कौन खिलायेगा? मुझे दो दिन पहले बुरा सपना आया था कि  लाला मुझे छोड़कर जा रहा है।
महेरबानी  करके मेरे लाला को मुझसे दूर मत करो। वृद्धावस्थामें मै उसके सहारे जी रही हूँ। मै उसे नहीं भेजूँगी।"

नंदबाबा यशोदाजी को समझाते है -कन्हैया अब गयारह वर्ष का हुआ है। अब कितने दिनों तक तू उसे घर में रखेगी? उसे बाहर का जगत भी देखना चाहिए। मै अब उसे गोकुल के राजा बनने योग्य बनाना चाहता हूँ।
हम दो-चार दिन मथुरा में घूम-घामकर वापस आ जायेंगे। तुम चिंता मत करो।

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