Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-419



नंदजी को पता नहीं है कि मथुरा में जाने के बाद क्या होने वाला है?
यशोदाजी को अनेक प्रकार के आश्वासन देते है। फिर भी यशोदाजी व्याकुल है।

रात्रि में सभी को निंद्रा आई पर यशोदाजी को नींद नहीं आती।
“आज मेरा लाला सो रहा है,और कल वह नहीं होगा न जाने कल क्या होगा। कन्हैया चला जायेगा तो-
मै अकेले कैसे जी पाऊँगी। वह बाहर आकर आँगन में बैठी है और कन्हैयाकी बातों को याद करके रो रही है।

मध्य रात्रि को जब कन्हैया की आँख खुली तो देखा कि माँ बिस्तर में नहीं है। वह इधर-उधर ढूंढने लगा।
उसने माँ को बाहर आँगन में रोते हुए पाया। वह माँ के पास बैठ गया और माँ के गले में हाथ डालकर,
उसके आँसू पोंछते हुए रोने का कारण पूछने लगा।
"तू क्यों रो रही है? तू रोती है तो मुझे बड़ा दुःख होता है। माँ,तू जो कहे वह करने को मै तैयार हूँ।"

कन्हैया की बात सुनकर  माँ को कुछ तसल्ली हुई।
यशोदाजी-मुझे कुछ नहीं हुआ,पर कल तू मथुरा जानेवाला है इसलिए मेरी आँखे बरस रही है।
मुझे छोड़कर तू कही भी न जाना। तेरे सहारे तो मै जी रही हूँ।

कन्हैया माँ को आश्वासन देने लगा- माँ,तू चिंता मर कर। मुझे भी जाने की इच्छा नहीं है पर बाबा की आज्ञा है इसलिए मुझे जाना पड़ेगा पर मै जरूर वापस आऊँगा।
यद्यपि लाला ने यह नहीं बताया कि  वह कब वापस लौटेगा। माँ ने भी पूछा नहीं है।
वह तो लाला के वापस आने की बात सुनकर खुशी में इतनी मग्न हो गई कि-  
यह पूछना भी भूल गई कि वह कब लौटेगा।

यशोदाजी  ने सोचा कि अगर मेरी आँख से आँसू निकले तो वह लाला से सहन नहीं होंगे। उन्होंने अपने दुःख को अन्दर ही रखा है। लाला को मनाकर वे सुलाने ले गए है। बिस्तर में लेटे हुए भी उन्हें चैन नहीं पड़ता।
आज श्रीकृष्ण ने यशोदा के ह्रदय में प्रवेश किया है। अब कन्हैया,उन्हें  बाहर ही नहीं,भीतर भी  दिखाई देता है।

दूसरी तरफ वसुदेव-देवकी कारागृह में ग्यारह वर्षों से तप कर रहे है।
अब यदि श्रीकृष्ण वहाँ नहीं जायेंगे तो उन दोनों के प्राण चले जायेंगे।

प्रातःकाल हुआ। यशोदाजी ने बलराम और कन्हैया को स्नान कराकर श्रृंगार किया है।
श्रृंगार करते माँ की आँखों से आँसू निकले है। “यह मनोहर मुख अब कब देखने मिलेगा?”
माँ को रोते  हुए देख कन्हैया भी रोने लगा।
माँ ने सोचा कि मेरे रोने से अगर कन्हैया रोता है,दुःखी होता है तो उसे देखते मै नहीं रोऊँगी।
यशोदाजी ने आज स्वयं भोजन बनाया है और कन्हैया को खिलाया है।
अक्रूरजी बाहर आँगन में रथ लेकर खड़े है।

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