Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-420



जब गोपियों को इस बात की खबर मिली तो दौड़कर आई है। उनके साथ राधाजी भी है।
राधाजी की उम्र आठ साल की है। (उस समय श्रीकृष्ण की ग्यारह वर्ष की है).
उनके मुख पर दिव्य तेज है। सादगी-भरा श्रृंगार है।
आज तक कभी उन्हें वियोग हुआ ही नहीं था,सो आज वियोग की बात सुनते ही अचेत सी हो गयी।
वे अचेतावस्था में ही कहते लगी- हे कृष्ण,मेरा त्याग मत करो। हमे छोड़कर मत जाओ।

गोपियां अक्रूरजी से भिड़ गयी।
हमारे कन्हैया को क्यों ले जा रहे हो? श्यामसुन्दर के दर्शन के बिना हम कैसे जियेंगे। कन्हैया को मत ले जाओ। तुम्हारा नाम अक्रुर किसने रखा? तुम तो क्रूर हो। हमे रुलाने के लिए आये हो।
हम तुम्हारे घर का हर कोई काम करने को तैयार है किन्तु कृष्ण-विरह में हमे मत मारो।
कृष्ण विरह से बड़ा और कौन सा दुःख होगा?

अक्रुर! कन्हैया के बिना गोकुल श्मशान सा हो जायेगा।
चाहे तो बलराम को तुम ले जाओ किन्तु कन्हैया को हमसे मत छीनो।

मथुरा की पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ कृष्ण की ऐसी सेवा करेंगी कि वह हमे भूल जायेगा। वे तो चतुर है और हम अनपढ़। वे कन्हैयाको उल्टा-सीधा पढ़ाकर वही रोक लेगी। वह शायद हमे भूल जाये पर हम नहीं भूलेंगे।

गोपी-प्रेम का वर्णन कौन कर सकता है?
अक्रूर का ह्रदय पिघला है। वे एक शब्द भी बोल नहीं सके। दोनों हाथ जोड़कर धरती पर नज़र रखे खड़े है।
उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा कि इन गोपियों को कैसे समझाया जाये।

कन्हैया ने गोपियों से कहा -मै  तो जा रहा हूँ किन्तु मेरे प्राणोंकी रक्षा के लिए तुम अपने प्राणकी रक्षा करना।
प्रभुने मूर्छित राधाजी को देखा तो उनके पास जाकर कान में कहने लगे-राधे,पृथ्वी पर असुर बहुत बढ़ गए है। उ
न पापी राक्षसों का नाश करके पृथ्वी का बोझ हल्का करना है। आज तक तेरे साथ प्रेम से नाचता-खेलता रहा।
अब जगत को नचाने जा रहा हूँ। आज तक तुम्हे खुश करने के लिए बाँसुरी बजाई,पर अब मथुरा जाकर शंख बजाऊँगा। प्राणों से भी प्यारी बाँसुरी तुम्हे देकर जा रहा हूँ।
राधे,तुम जब-जब यह बाँसुरी बजाओगे मै दौड़ता  हुआ आऊँगा। मै तुम्हारे ह्रदय में हूँ।
राधाजी एक शब्द भी नहीं बोल सके।

गोपियाँ रो रही है। कन्हैयाने उनकी धीरज बांधते हुए कहा -
मेरे मंगलमय प्रयाण के समय रोने से अपशुकन होंगे। मै जरूर वापस लौटूँगा।

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