Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-421



गोपियों को समझाकर कृष्ण और बलराम नंदजी के साथ रथ में बिराजे है।
रथ चलने लगा तो गोपियाँ भी पीछे-पीछे चलने लगी।
कन्हैया के मना करने पर आँसू रुक गए थे किन्तु फिर बह निकले। ने जाने अब कन्हैया कब लौटेगा?
न जाने कब दर्शन होंगे फिर उसके? विरह की संभावना से व्याकुल बनी है। और जोरों से रोने लगी है।
हे गोविन्द! हे माधव! इस गोकुल को मत उजाड़ो। इसे अनाथ मत करो। हमे मत भूल जाना।

दृश्य इतना करुण था कि अक्रूरजी भी द्रवित हो गए। गायें भी रो रही थी।
कई गोपी  तो रथ के पीछे दौड़ रही थी तो कोई मूर्छित होकर गिर गई थी।
इस गोपी-प्रेम की कथा का वर्णन कौन कर सके?

श्रीकृष्ण ने अक्रूरजी से कहा-
ये प्रेम से छलकते हुए ह्रदय वाले ग्रामजन मुझे आगे बढ़ने नहीं देंगे। सो रथ जरा जल्दी चलाओ।

यशोदाजी अब तक धीरज रख खड़ी था। पर अब उनका धैर्य न रहा और वे रथ के पीछे दौड़ने लगी।
प्रभु ने दौड़ती हुई माताको देखा तो रथ रुकवाया।

यशोदाजी आई है -”मेरा लाला -मेरा लाला ,कहकर कन्हैया को गले लगी है।
बेटा ,तेरे जाने से मुझे बहुत दुःख हो रहा है। मै तो चाहती थी मेरी आँखों से तू कभी दूर न होने पाए,
पर बेटा तेरी इच्छा वह मेरी इच्छा है। तेरी इच्छा विरुद्ध मेरे कुछ नहीं करना है।
बेटा मैंने मेरे सुख के लिए तुझे प्रेम नहीं किया है। तेरा सुख वह मेरा सुख है।
मै रोज नारायण से प्रार्थना करुँगी कि मेरा लाला जहाँ भी रहे आनंद में रहे,सुख में रहे।
तुम दोनों भाई साथ ही रहना।

लाला,तुझे एक रहस्य की बात कहने आई हूँ। बेटा,तू मुझे माँ कहता है,पर मै तेरी माँ नहीं हूँ।
तेरी असली माँ तो  देवकी है। मै तो तेरी पालक माँ हूँ। तेरा लालन-पालन करने वाली दासी हूँ।

लाला -माँ,तुम यह क्या कह रही हो? लोग चाहे जो कहे,मै तो सारे जगत से यही कहूँगा कि मै यशोदा का ही बेटा हूँ।
यशोदाजी-तू आज जा रहा है तब मुझे एक बात याद आ रही है,मैंने एक भूल की थी। एक बार तेरी इच्छा विरुध्ध जाकर मैंने तुझे  मूसल से बांधा था। यह बात तू भूल जाना। यह दासी तुझसे क्षमा माँगती है।

कन्हैया- मै सब कुछ भूल सकता हूँ किन्तु तेरे बंधनों को कैसे भूल जाऊँ ?तूने अपने प्रेम से मुझे बांधा है। मै मात्र तुझसे ही बंध पाया हूँ। तेरा प्रेम तेरा कन्हैया कभी नहीं भूलेगा। माँ,लोग चाहे कुछ भी बोले,तुम उनका मत सुनना।

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