Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-422


यशोदा-तू कही मुझे भूल तो नहीं जायेगा? मुझसे मिलने के लिए आएगा न?
कन्हैया-अवश्य आऊँगा। तू अपने शरीर और हमारी गायों की पूरी देखभाल करना।

यशोदाजी का दिल भर आया। लाला को आशीर्वाद दिये है। “मेरा कन्हैया जहाँ भी रहे,सुखी रहे।”
यशोदाजी को वंदन  करके  श्रीकृष्ण वापस रथ में बैठे है। रथ आगे बढ़ने लगा। प्रेम से पागल गोपियाँ अभी तक
रथ के पीछे दौड़ रही है। उन्होंने कन्हैया की आरती उतारनी चाही तो रथ फिर से रोका गया।

श्रीकृष्ण गोपियों से कहने लगे-दुष्टों की हत्या,दैत्यों का संहार तो मेरे जन्म का गौण प्रयोजन है।
मेरा मुख्य प्रयोजन तो गोकुल में प्रेम लीला करना है। मेरा एक स्वरुप यहाँ तुम्हारे पास  रहेगा और
दूसरा स्वरूप मथुरा में। पहले तो मात्र यशोदा के घर ही कन्हैया था। पर अब हर गोपी के घर में एक-एक कृष्ण है। कृष्ण ने सभी गोपियों के ह्रदय में प्रवेश किया है।

महाप्रभुजी कहते है कि यह अन्तरंग का संयोग है और बहिरंग का वियोग।
प्रत्येक गोपी अनुभव कर रही है कि कृष्ण उनके पास बसे  हुए है और मथुरा नहीं गए है।

श्रीकृष्ण को लेकर रथ चला गया और गोपियाँ चित्रसी (स्तब्ध सी) खड़ी की खड़ी रह गयी।
कन्हैया ने गोकुल का त्याग नहीं किया है। वह तो हर एक गोपी के ह्रदय में बसा हुआ है।
भगवान ने वचन दिया था-  वृन्दावनं परित्यज्य पादमेकं न गच्छति।

वियोगके बिना तन्मयता आ नहीं सकती। बिना वियोग ध्यानमें एकाग्रता नहीं आ पाती और साक्षात्कार नहीं होता। व्रजवासी को अपने विरह के सहारे तन्मय बनाने के हेतु से ही भगवान  मथुरा गए।
वियोगसे,विरहसे प्रेम पुष्ट बनता है। इसलिए श्रीकृष्णने गोपियोंको इस वियोगरूपी विशिष्ट योगका दान किया।

रथ बढ़ता हुआ मथुरा के द्वार पर  पहुँचा है। श्रीकृष्ण ने अक्रुरजी से कहा -हम अभी नगर में प्रवेश नहीं करेंगे।
यहाँ बाग में विश्राम करेंगे। आप कंस को खबर देकर अपने घर जाओ। अक्रूरजी ने बहुत आग्रह किया कि-
मेरा घर पावन करो। श्रीकृष्ण ने कहा -मामाजी की खबर लिए बिना मै किसी के घर नहीं जा सकता।

जिस नगर में कंस हो वहाँ श्रीकृष्ण  कैसे रह सकते है? यदि वे अंदर जाए तो कंस का नाश हो जाये।
प्रकाश और अन्धकार एक साथ कैसे रह सकते है?
विषयानंद और ब्रह्मानंद एक साथ नहीं रह सकते।
मथुरा-मानवकायामें भी श्रीकृष्ण-ब्रह्म और कंस-काम एक साथ नहीं रह सकते। इतना समझो तो भी  बहुत है। तुलसीदासजी कहते है -

जहाँ काम वहाँ राम नहीं,जहाँ राम,नहीं काम।  तुलसी कबहु न रही सकै ,रवि रजनी एक ठाम.

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