यशोदाजी ने दूध-दही तथा अन्य खाद्य-सामग्री बनाकर लाला को दी है। लाला को माँ का स्मरण हुआ।
“मेरी माँ बहुत भोली है.आज घर में अकेली रो रही होगी।” श्रीकृष्ण माँ के प्रेम को कभी नहीं भूले है।
आज माँ को याद कर वे भोजन न कर सके। नंदबाबा की नजर लाला पर पड़ी और कारण पूछा।
कन्हैया -मेरी गाये न खाए,मेरी सखियाँ न खाये,मेरी माँ ने खाये,तब तक मै कैसे खा सकता हूँ?
बाबा,मेरी माँ और मेरी गाये उपवास करे तो मै कैसे भोजन करू?
प्रभु के साथ ऐसा प्रेम करो कि वे तुम्हे याद करे। जब तक प्रभु की यादों में तुम बस नहीं पाओगे,
तुम्हारी भक्ति अधूरी ही रहेगी। भक्ति ऐसी करो कि भगवान को तुम्हारे बिना चैन न आए।
दूसरे दिन गोप बालकों ने कन्हैया से कहा -लाला तू हमे मथुरा नगरी नहीं बताएगा? लाला ने कहा -हम शाम को मथुरा नगरी देखने जायेंगे। उस समय नंदबाबा ने कहा -यहाँ तो कंस राजा की जय जयकार हो रही है।
यह बड़ा शहर है। अँधेरा होने से पहले वापस आ जाना।
शाम को बलराम-कृष्ण गोपबालकों सहित मथुरा देखने गए। महाद्वार में प्रवेश किया।
आदत के कारण गोकुल के बालक कन्हैया के साथ चलते हुए उसकी जय पुकारने लगे।
मथुरा की स्त्रियों ने भी सुना तो दौड़ती हुई श्रीकृष्ण के दर्शन करने आई है।
शुकदेवजीने वैसे ही वर्णन नहीं किया है,उन्होंने ऐसा वर्णन किया है की-वे प्रत्यक्ष प्रभुकी लीला देख रहे है।
जो लीला हो रही हो,वह लीला प्रत्यक्ष चल रही है,
उसका प्रत्यक्ष अनुभव करने की कल्पना की जाए तो वक्ता और श्रोता को अति आनन्द आएगा।
मथुरा की स्त्रियाँ श्रीकृष्ण के दर्शन करती हुई आपस में बातें करने लगी।
रास्ते में राजा कंस का धोबी मिला जो राजा के कपडे लेकर जा रहा था।
यह वही धोबी था जिसने रामावतार में जानकी माता की निंदा की थी।
श्रीकृष्ण ने धोबी से अपने मित्रों के लिए कुछ कपड़े माँगे। वह मूर्ख धोबी अकड़ से कहने लगा-
मै कंस राजा का धोबी हूँ और ये कपडे कंस राजा के है। यह तुम्हारा गँवार गाँव नहीं है।
तूने तो क्या तेरे बाप दादा ने भी ऐसे कीमती कपडे कभी देखे है?
ज्यादा गड़बड़ करेगा तो राजाके सिपाहियों के हवाले कर दूँगा। बचना है तो भाग जाओ इधर से।
धोबी की धृष्टता बलराम से सही न गयी।
"कन्हैया,लगता है,इस धोबी के सर पर मृत्यु मँडरा रही है। लगा दे एक झापट इसे।"
कन्हैया ने पल भर में उसका मस्तकपे ऐसी झापट लगाईं की-धोबी जमीन पर गिर गया।
धोबी की ऐसी दशा देखी तो उसके साथी कपड़ो की गठरियाँ वहीँ छोड़कर भाग गए।
कन्हैया ने मित्रो से कहा -यह सब मेरे ही कपडे है। तुम गठरी खोलकर कपडे पहनो।