Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-424



तब एक मित्र ने कहा-कन्हैया,तेरी चोरी करने की आदत अभी गई नहीं है।
श्रीकृष्णने कहा-"मै चोरी नहीं करता। मै तो इन सबका मालिक हूँ। यह सब जगत को  मैंने दिया है।
इसलिए सब मेरा है।" गोप मित्र अभी भी कपडे लेने  से डर रहे थे। कन्हैया ने स्वयं कपड़े बाँट दिए।
जिसे जो कपडा दिया,वह उसी नाप का निकला। गोप मित्र आनंद से नाच उठे।

कृष्ण ने प्रतिज्ञा की थी -मेरे मित्रों को अच्छे कपडे पहनाकर मै पहनूँगा।
श्रीकृष्ण का प्रेम अलौकिक है। मित्रो के साथ गोप बालक बनकर खेले। तब भूल गये कि वह ईश्वर है।
श्रीकृष्ण ने अपने गरीब मित्रो को अच्छे वस्त्र पहनाये और बाद में स्वयं पहने।
पहले वे बिना सिले हुए कपडे-पीताम्बर और कमली पहनते थे। प्रेम कैसे करना वह,प्रभुने जगतको बताया है।

रास्ते में फिर सुदामा माली मिला। उसने प्रभु को फूल की माला पहनाई।
आगे बढे तो कंस की दासी कुब्जा मिली। उसके तीन अंग बेढंगे थे। वह चन्दनपात्र लेकर जा रही थी।
उसने प्रभु को चन्दन दिया तो वे प्रसन्न हुए।
प्रभु ने सोचा,इस कुब्जा ने मुझे चन्दन देकर मेरी शोभा बढ़ाई है तो मै भी उसकी शोभा बढ़ा दू।
उन्होंने उसे पकड़कर हिलाया कि कुब्जा के अंग अच्छे हो गए और वह सीधी हो गई।   

इस कुब्जा-प्रसंग में एक रहस्य है। हमारी बुद्धि ही कुब्जा है जो काम क्रोध और लोभ से वक्र हो गई है।
प्रभु की पूजा,इन तीनों दोषों को नष्ट करके बुद्धि को शुद्ध करती है।
बुद्धि यदि कंस काम की सेवा करेगी तो विकृत हो जाएगी। बुद्धि ईश्वर के सम्मुख आकर सरल बन सकती है।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो पाँचो विषय जीव को सताते रहते है।
कंस की सेवा करने वाली बुद्धि भ्रष्ट,वक्र होगी
और कृष्ण की सेवा करने वाली सरल विषयों का चिंतन करने से बुद्धि सरल  होगी।     

यज्ञ का आरंभ हुए चार दिन समाप्त होकर आज पाँचवा दिन है।
यदि आज का दिन निर्विघ्न समाप्त हो जाए तो कंस का कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकेगा।
उसी समय यज्ञ का स्थान पूछते-पूछते श्रीकृष्ण वहाँ आये है। कृष्णने धनुष उठाकर उसके दो टुकड़े कर दिए। ब्राह्मणों ने कहा-धनुष टूटा इसलिए यज्ञ अधूरा रहेगा।
कंस के सेवको ने जाकर कंस को खबर दी है। कंस अति क्रोधित हुआ है।    

दूसरे दिन राजसभा का आरम्भ हुआ है। कंस की मृत्यु निकट आ रही है। उसने अपने मल्ल चाणूर-मुष्टिक को कृष्ण-बलराम को मार डालने की आज्ञा दी। किसी भी तरह उनसे कुश्ती करना और पछाड़ देना।

नंदबाबा भी कृष्ण-बलराम और अन्य गोपबालकों के साथ राजसभा में  पधारे।   

कंस ने कपट कर सबसे पहले प्रभु पर कुवलयापीड़ हाथी को छोड़ा। पर प्रभु ने लीला की और हाथी को मारा है। सभा के सभी लोगों को श्रीकृष्ण की ताकत का परिचय हुआ।

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