Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-425



प्रभु ने सभा में प्रवेश किया उसी समय चाणूर बोलने लगा -अये बलराम-कृष्ण यहाँ आओ।
हमारे महाराज को कुस्ती देखने के शौक़ीन है।  जिसकी जित होगी उसे महाराज भेंट देंगे।
श्रीकृष्ण बोले-महाराज को खुश रखना हमारा कर्तव्य है,पर हम बालक है और आप बड़े पहलवान है।
आपके साथ नहीं पर दूसरे बालकों को बुलाओ तो हम कुस्ती करेंगे।

मदिरापान से उन्मुत्त चाणूर बोला -अरे तू बालक नहीं है। तूने  तो बड़े-बड़े राक्षसों को मार डाला है।
और उसने कृष्ण का हाथ पकड़कर घसीटने का प्रयत्न किया।
कृष्ण-यह तो अधर्म  का युद्ध होगा।
चाणूर- लड़ने में धर्म क्या और अधर्म क्या?
कृष्ण- यदि तुझे लड़ना ही है तो मै डरने वाला नहीं हूँ। मेरे माँ ने दूध-माखन खिलाकर मुझे हृष्ट-पुष्ट बनाया है।

इस कथा के पीछे भी रहस्य है। संसार अखाडा है,काम चाणूर है और क्रोध मुष्टिक।
संसाररूपी अखाड़े में काम-क्रोध रूपी मल्लो से हमे लड़ना है। वे अनादिकाल से जीवों को पछाड़ते आये है।
यदि सावधानी से काम लोगे तो काम-क्रोध को मार  सकोगे,अन्यथा वे ही तुम्हे पछाड़ देंगे।
मनुष्य का अवतार ही काम-क्रोध पर विजय पाने के लिए है।

कुस्ती शुरू हुई तो नंदबाबा घबराने लगे। "ये मल्ल मेरे बच्चों को मार डालेंगे।"
श्रीकृष्ण तो परमात्मा है किन्तु नंदजी के लिए तो वे बालक ही थे।
नंदबाबा ने आँखे मूंदकर नंदेश्वर महादेव की मिन्नत मानी-
यदि आप मेरे कन्हैया-बलराम की रक्षा करेंगे तो मै ग्यारह मन लडडू चढ़ाऊँगा।
फिर उन्हें  ध्यान आया कि कुश्ती के स्वामी हनुमानजी है।
तो उन्होंने हनुमानजी की वैसी ही मिन्नत मानी। मेरे बालकों की रक्षा करो।

कन्हैया ने देखा कि पिताजी भयभीत होकर देवों की मिन्नत मान रहे है। उन्होंने शीघ्रता से काम पूरा करना चाहा। इधर चाणूर भी जान गया कि कन्हैया कोई सामान्य बालक नहीं है,उसका काल ही है।
यदि वह भागने की कोशिश करेगा तो कंस मार डालेगा। सो बहेतर है कि कृष्ण के ही हाथों अपनी जान जाये। असावधान को काम मार सकता है,सावधान को नहीं।
श्रीकृष्ण ने चाणूर को मार डाला और बलराम ने मुष्टिक को।

कंस घबराया है,मेरा काल मेरे सिर पर मंडरा रहा है। घबराहट में सिर का मुकुट नीचे गिर गया।
श्रीकृष्ण ने आकर उसके सिर के बाल पकडे है और कहा -
मामा,तुम्हे याद है आपने मेरी माँ की चोटी पकड़ी थी। मै देवकी माँ का आठवाँ संतान हूँ।
आपको मारने के लिए तैयार हूँ। आपको मारनेके लिए ही मैं  यहाँ आया हु।
श्रीकृष्ण ने कंस के बालों को पकड़ झंझोड़कर जमीन पर पटक दिया कि उसके प्राण निकल गये।

   PREVIOUS PAGE          
        NEXT PAGE       
      INDEX PAGE