कन्हैया मामीजी के पास गया और रोने का नाटक करने लगा। उन्हें समझाता है -
मै ग्यारह वर्षों में पहली बार मामा से मिलने आया और वे हमे छोड़कर चले गए। ओ मामा रे…
मामी -कन्हैया,तू मत रो। जो होना था सो हो गया।
वे बाल हत्याओंके पापके कारण ही मर गए। तेरा कोई दोष नहीं है।
श्रीकृष्ण तो परमात्मा है। परमात्मा निर्दोष है। वे किसी को मारते नहीं है,तारते है। वे सभी को आनंद देते है।
रामायण में मन्दोदरी ने भी श्रीराम को निर्दोष बताकर रावण को ही दोषी ठहराया है।
रावण अपने पापो के कारण ही मरा था।
कंस अभिमानका ही रूप है। उसकी रानियोंके नाम भी सूचक,अस्ति और प्राप्ति है।
सारा दिन अस्ति और प्राप्ति की सोच में डूब रहने वाला जीव ही कंस है।
नीति-अनीति से धनोपार्जन करके मौज उडाने की इच्छा करनेवाला,संसार-सुखोका उपभोग करनेवाला ही कंस है। कंस,अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बनाकर राजा बन बैठा था।
उस समय तो एक कंस था,आज तो जहाँ देखो वहाँ कंस ही मिलेंगे।
जीव हमेशा काम-क्रोध से पिटता आया है। उसको मारना है।
शब्दब्रह्म (बलदेव) की उपासना से क्रोध मरता है और परब्रह्म (कृष्ण) की उपासना से काम।
कंस वैर से भी श्रीकृष्ण का ध्यान करता था। मन मित्रसे ज्यादा वैरी का स्मरण करता है।
कंसने श्रीकृष्णके साथ वैरका सम्बन्ध जोड़ा था,पर चिंतन तो हमेशा श्रीकृष्णका ही किया।
इसलिए भगवान ने उसे मुक्ति दी।
श्रीकृष्ण कहते है -भले वैर भाव से पर जो मेरा स्मरण करता है मै उसे मुक्ति देता हूँ।
भगवान अगर वैरीको भी मुक्ति देता है तो जो प्रभु का प्रेमसे स्मरण करता है उसे जरूर मुक्ति मिलती है।
कन्हैया ने कंसको मारकर अपनी जन्मभूमि का उद्धार किया है। माता-पिता को कारागृहसे मुक्त किया है। वसुदेव-देवकी ने ग्यारह वर्ष कारागृह में तप किया,ध्यान किया इसलिए प्रभु के दर्शन हुए है।
माता-पिता का दिल भर आया। वे बोलना तो बहुत कुछ चाहते थे किन्तु भावावेश से निहारते ही रह गये।
सभी अपरस्पर को प्रेम से,संतोष से देख रहे है।
तब धैर्य धारण करके कन्हैया ने कहा -चारों पुरुषार्थ को सिद्ध करने वाला यह मानव शरीर है।
और ऐसा यह शरीर माता-पिता देते है। माता-पिता का यह उपकार जीव नहीं भूल सकता।
मेरे अपराधकी क्षमा करो। अब मै आपसे कभी दूर नहीं जाऊँगा। मेरा प्रणाम स्वीकार करो।