Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-427



उसके बाद कन्हैया को हाथी पर बैठाकर सारे नगर में घूमाया गया।
नंदबाबा सोचते है कि कन्हैया का इतना धूमधाम से सन्मान तो किया गया किन्तु किसी ने यह नहीं पूछा कि-
वह भूखा भी है या नहीं। वे माखन-मिसरी  ले आये और कन्हैया को हाथी पर से नीचे  उतारकर प्रेम से खिलाया। रास्ते में इस प्रकार विश्राम किया,और  उस घाट का नाम विश्रामघाट हो गया।

लोगों ने श्रीकृष्ण से मथुरा का राज्य स्वीकार करने का आग्रह किया तो -
उन्होंने कहा,मैंने राज्य के लोभ से नही किन्तु लोगों की पीड़ा दूर करने के लिए कंस का वध किया है।
कंस के पिता उग्रसेन को ही राजा बनाना होगा। मै  तो आपका सेवक हूँ।
उंन्होने राज्य उग्रसेन को सौप दिया। उन्होंने गीता में निष्काम कर्म का उपदेश दिया है -
तो उन्होंने मथुरा का राज्य उग्रसेन को देकर आदर्श को चरितार्थ भी कर दिखाया है।

अब नंदबाबा की विदाई का प्रसंग आता है।
यह प्रसंग भागवत में एक-दो श्लोक में कहा  है,पर अन्य ग्रंथो में विस्तार से कहा है।
नंदजी का मुकाम मथुरा के बाहर बाग में था। श्रीकृष्ण बलराम को महल में ले गए है।
गंगाचार्य नंदजी के पास आये है-श्रीकृष्ण वसुदेव के आठवें पुत्र है। आपके यहाँ कन्या हुई थी।
श्रीकृष्ण अब गोकुल नहीं आयेंगे  पर मथुरा में ही रहेंगे।

श्रीकृष्ण मेरे पुत्र नहीं है ऐसा सुनते ही नन्दजी को मूर्छा आई है। श्रीकृष्ण को खबर मिलते ही दौड़ते हुए आये है। उन्होंने नंदबाबा को साष्टांग प्रणाम किया। नंदजी मूर्छा से जागे है और श्रीकृष्ण को गले लगाया।
बलराम और श्रीकृष्ण नंदबाबा से कहने लगे -बाबा,जब हम मल्लो से युद्ध कर रहे थे तब हनुमानजी के दर्शन हुए थे।

नंदजी ने मान लिया कि उन्होंने हनुमानजी की मन्नत मानी थी सो उन्होंने बालकों की रक्षा की।
अगर ऐसा नहीं होता तो मेरे ये बालक उन मल्लों को कैसे पछाड़ सकते थे? नंदबाबा बड़े भोले है।

श्रीकृष्ण नंदजी से कहने लगे -लोग चाहे जो कहे,हम तो आपके ही है। आप ही मेरे पिता है और यशोदा मेरी माँ है। मैंने कंस का वध किया है सो जरासंघ,दंतवत्र आदि मेरे शत्रु हो गए है।
यदि मै गोकुल जाऊँगा तो वे सब मुझसे लड़ने के लिए आयेंगे और सभी गोकुलवासियों को भी सतायेंगे।
सो कुछ समयके लिए यही रहकर उन राजाओंका पराभव करके गोकुल आऊँगा। आपके आशीर्वादसे सब ठीक हो जाएगा। मै यहाँ अपना काम पूरा करके आप के पास चला आऊँगा। आप गोकुल पधारे और मेरी माँ,सखियाँ और गायों की देखभाल करें। मेरी माँ से कहना कि उसका कन्हैया अवश्य लौटेगा।

प्रेम में आग्रह हो सकता है,दुराग्रह नही।
नंदबाबा बोले- बेटा,मे दुराग्रह तो कैसे करू? मैंने तेरी  नहीं, तेरे सुख की कामना की है। हमने अपने सुख के लिए नहीं,तेरे सुख के लिए ही प्रेम किया है। मै नारायण से हमेशा प्रार्थना करता रहूँगा कि वे तुझे सुखी रखे।
कभी व्रज में अवश्य आना।
कन्हैया -हाँ,अपना काम पूरा करके मै अवश्य लौटूँगा। मेरी माँ से भी यह कहना। मेरी गायों की देखभाल करना।
यह प्रसंग भागवत में नहीं है। किन्तु अन्य ग्रंथों में है।

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