Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-429



भगवान ने संयम (सुदामा) के साथ मैत्री कर  सदाचारी जीवन व्यतीत करके विद्याभ्यास पूरा किया है।
उन्होंने सांदीपनि से कहा  -आपने हमे सच्चा सुख कहाँ है वह समझाया है। आपको मै क्या गुरुदक्षिणा दू?

सांदीपनी ऋषि कुछ नहीं मांगते और बोले- कोई भी अपेक्षा बिना मैंने विद्या दी है। मुझे कुछ नहीं चाहिए।
शिप्रा नदी के किनारे बसे  हुए मेरे आश्रम में फल और जल की कोई कमी नहीं है।
और दूसरी किसी चीज़  की मुझे आवश्यकता नहीं है।

कन्हैया- गुरूजी,वह तो ठीक है,किन्तु गुरु दक्षिणा दिए बिना मेरी विद्या असफल रह जाएगी,
सो आपको कुछ न कुछ तो मांगना होगा।
सांदीपनि - यदि कोई सुपात्र विद्यार्थी मिल जाए तो कुछ भी पाने आशा न करके विद्यादान करके विद्यावंश बढ़ाते रहना। ज्ञानदान में कृपणता न करना। शिष्य परंपरा बढ़ाते हुए विद्यादान करते रहना। बस,यही मेरी इच्छा है।

कृष्ण ने गुरु को दिए वचन का पूर्णतः पालन किया।
उन्होंने अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में गीता का दिव्य ज्ञान तो दिया किन्तु उससे कुछ नहीं लिया।
उन्होंने न केवल अर्जुन को ज्ञान दिया अपितु उसकी और उसके अश्वो की सेवा भी की।
महाभारत में लिखा गया है कि रात्रि के समय जब अर्जुन सो जाता था तो श्रीकृष्ण उसकी सेवा करते थे
और घोड़ो की देखभाल करते थे। घोड़ो के घावों की मरहमपट्टी भी करते थे।
श्रीकृष्ण ने शिष्य की सेवा कर जगत को बोध दिया है।

गुरु निरपेक्ष होना चाहिए और शिष्य निष्काम।
किन्तु आजकल तो सभी लोग दोनों हाथों से सब कुछ बटोरना चाहते है।
लोग चाहते है कि संत-महात्मा के आशीर्वाद से संपत्ति,संतति मिल जाये तो कितना अच्छा।
किन्तु जो सच्चा संत होता है,वह कभी सांसारिक झंझट के आशीर्वाद नहीं देता।
सच्चा संत तो विकार वासना नष्ट करने वाले अलौकिक भजनानंद का दान करता है।

कन्हैया को गुरु दक्षिणा दें की बहुत इच्छा थी इसलिए घर के अंदर जाकर गुरुपत्नी से कहा -
गुरूजी कुछ लेना नहीं चाहते,किन्तु मै गुरूजी को कुछ देना चाहता हूँ।  
गुरु पत्नी - मेरा एक पुत्र था जो प्रभास यात्रा के समय समुद्र में डूब कर मर गया था।
यदि तुझे गुरु दक्षिणा देनी है तो मेरा खोया हुआ पुत्र ला दे। ऐसी दक्षिणा तो सिर्फ ईश्वर ही दे सकते है।

भगवान श्रीकृष्ण ने  बालकको ढूँढने के लिए समुद्र में गोता लगाया।
बालक तो नहीं मिला पर वहाँ उन्हें पञ्च जन्य शंख प्राप्त हुआ। उन्होंने वह धारण किया।
अब मुरलीधर कृष्ण,शंखधर बने है।
वहाँ से श्रीकृष्ण यमपुरी में गए। यमराजने माफ़ी मांगी और  ऐसे वह गुरुपुत्र को ले आये।
गुरु दंपत्ति ने ह्रदय से आशीर्वाद दिया -
बेटे,तेरे मुख में सरस्वती का और चरणों में लक्ष्मी का वास होगा। मेरी विद्या के वंश को बढ़ाते रहना।

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