Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-430



भगवानने गोकुल लीला ग्यारह वर्षो की,,मथुरा लीला चौदह वर्षो की और द्वारिकालीला  सौ वर्षो की थी।
वे पृथ्वी पर एक सौ पच्चीस वर्ष तक सशरीर रहे थे। विद्याभ्यास समाप्त करके श्रीकृष्ण मथुरा आये।
यादवों को परम आनंद हुआ। मथुरा के राजमहल में निवास किया।

अब ऊध्वागमन का प्रसंग आ रहा है।
उद्धवागमन की कथा वक्ता के लिए एक आवाहन है,ऐसा दक्षिणके महात्माओं का मत है।
इस प्रसंगमें ज्ञान और भक्ति का मधुर कलह है। इसमें ज्ञान और भक्तिका एक समन्वय भी है।
उद्धवजी निर्गुण ज्ञान के पक्ष-धर (पक्ष-वाले) है तो गोपियाँ प्रेमलक्षणा सगुण भक्ति की।
वैसे तो भक्ति और ज्ञान में कोई अंतर नहीं है। भक्ति की ही पूर्ण-गति है ज्ञान।

ज्ञान के अभाव में भक्ति अंधी है और भक्तिके अभाव में ज्ञान पंगु।
भक्तिके लिए ज्ञान और वैराग्य दोनोंकी आवश्यकता है। ज्ञान और वैराग्यके बिना भक्ति वन्ध्या रह जाती है।  

आरम्भमें यदि स्वयं को प्रभुका दास मानकर-दासोहमकी भावना की जाए तो भगवानसे लगाव हो सकता है।
मान लो कि तुम भगवान के हो और वे तुम्हारे है।
ऐसी अनुभूति होने पर ही देहभान भूलता है और तब “मै”का अस्तित्व मिट जाता है।
मात्र भगवान् का ही अस्तित्व अनुभूत होने लगता है और आगे चलकर भगवान से तादाम्य बढ़ जाता है।
दासोहमकी (भक्ति) अवस्थासे अब सोहम की (ज्ञान) अवस्था की ओर प्रगति होती है। जोवन सफल होता है।

कुछ ज्ञानी मानते है कि उनको भक्ति की आवश्यकता नहीं है। वे भक्ति का तिरस्कार करते है।
इसी प्रकार कुछ भक्तजन ज्ञान और वैराग्य की उपेक्षा करते है। इन दोनों के द्रष्टिकोण गलत है।
भक्ति और ज्ञान परस्पर के पूरक है। भक्ति में ज्ञान का साथ न हो तो अखंड भक्ति नहीं होती।
ज्ञान-वैराग्य के सहित भक्ति होनी चाहिए।

उद्धव, ज्ञानी तो थे किन्तु उन्हें भक्ति का साथ नहीं था। भक्ति-रहित ज्ञान अभिमानी बनाता है।
भक्ति ज्ञान को नम्र बनाती है। भक्ति का साथ न हो तो ज्ञान अभिमान के द्वारा जीव  को उद्धत  बना देगा।
ब्रह्मज्ञान होने पर ही यदि स्वरुप प्रीति  न होगी तो ब्रह्मानुभव नहीं होगा।
सच्चा ज्ञानी वह है जो परमात्मा से प्रेम करता है।
ज्ञानी होनेके बाद धन,प्रतिष्ठा,आश्रम,अहम आ जाये तो पतन ही होगा। इसलिए,ज्ञानीको भक्तिकी आवश्यकता है। जीव ईश्वर से जब प्रगाढ़ प्रेम करने लगे तभी वे अपने मूल रूप का दर्शन कराते है।

भक्ति के बिना ज्ञान और ज्ञान के बिना भक्ति अपूर्ण है।
भक्ति को यदि ज्ञान का साथ न होगा तो ईश्वर की सर्वव्यापकता का अनुभव नहीं हो पायेगा।
एक ही वस्तु  में ईश्वर का अस्तित्व मानने वाला वैष्णव अधम है। हर कही ईश्वर को ही देखने वाला महान वैष्णव है।

वैराग्य का साथ न होगा तो भक्ति घर के किसी एक कोने से ही ठाकुरजी को देखती रहेगी।
यदि भक्ति को ज्ञान का साथ होगा तो कण- कण में भगवान  के दर्शन होंगे।

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