ज्ञान और भक्ति में वैराग्यकी (कर्म-मार्ग-में वैराग्यकी) भी इतनी ही जरूर है।
ज्ञान,भक्ति और वैराग्य जब साथ हो तो ईश्वर का अनुभव होता है।
पर यहाँ तो गोपियों की भक्ति ज्ञानोत्तर (ज्ञान से पर) है।
उद्धवजी यह नहीं जानते थे कि ज्ञानोत्तर भक्ति भी हो सकती है।
श्रीकृष्ण ने सोचा कि यदि गोपियोंको ज्ञान का अनुभव हो जाएगा तो उनको दुःख आदि नहीं सतायेंगे
और उद्धवजी को भक्ति का अनुभव होगा तो उनका ज्ञान सफल होगा और उनका कल्याण भी होगा।
गोपियोंको उद्धवजी से ज्ञानार्जन हो जाए तो मेरा विरह उन्हें नहीं सताएगा।
उनको अनुभव होगा कि मै उनके समीप ही हूँ। मुझे गोपियोंका भी कल्याण करना है और उद्धवजीका भी।
उध्धवगमन की कथा कहने में कथाकार की कसौटी है।
कहते है कि उध्धवगमन का पाठ करते हुए एकनाथ महाराज तीन दिनों तक समाधिस्थ हो गए थे।
गुरुकुल में अभ्यास पूर्ण करके श्रीकृष्ण मथुरा आये। राजा उग्रसेन बड़े विवेकी थे।
उन्होंने भगवान से कहा -यह सारा राज्य आपका ही है। मै तो आपका सेवक हूँ। आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य होगी। उन्होंने सर्व संपत्ति श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पण की।
श्रीकृष्ण अब मथुरानाथ है। गोकुलके गोपाल अब मथुरा के अधिपति है।
गाये चरानेवाला कन्हैया की अब कई दास -दासियां सेवा कर रहे है।
सभी प्रकार का सुख और ऐश्वर्य उनके चरणों में उपस्थित है।
सर्व प्रकार का सुख और संपत्ति होने के पश्चात्त भी श्रीकृष्ण आनंद में नहीं है।
व्रजवासियों का प्रेम को भूल नहीं पाते। राजमहल की अटारी में बैठकर वे गोकुलकी झाँकी करते रहते है।
वे बार-बार यशोदाजी को याद करते है। मेरी माँ आँगन में बैठकर मेरी प्रतीक्षा करती होगी।
वह मेरी प्रतीक्षामें रोती होगी। वह सोचती होगी-मेरे लालाने कहा था कि वह जरूर आएगा,वह कभी भी आएगा। मेरी माँ बहुत भोली है। मेरे नंदबाबा मुहे याद करते होंगे।
मेरी प्यारी गायें और बछड़े क्या करते होंगे? मथुरा की ओर मुँह करके मुझे पुकारती होगी।
इस प्रकार वे बार-बार सभी को याद करते थे और आँसू भी बहा लेते थे।
सांयकाल होने पर अटारी में बैठकर व्रजवासियों की याद में आँसू बहाने का श्रीकृष्ण का नियम-सा हो गया था।
वे गोपियो को,गायों को,और माता-पिता को याद करते। रोती हुई माँ को कौन धीरज देता होगा?
व्याकुल गायों को कौन खिलाता होगा? सभी को याद करके उनका ह्रदय भर आता।