Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-432



जीव  ईश्वरका स्मरण करे वह सामान्य भक्ति है ,पर जिस जीवको परमात्मा याद करे वह जीव सच्चा भक्त है। उद्धवजी रोज़  श्रीकृष्णको देखते है,पर मालिक की उदासीनता का रहस्य नहीं समझ पाते।
एक बार श्रीकृष्ण सायंकाल में अटारी में बैठे गोकुल की याद में गमगीन थे -
तब उद्धव ने बिना संकोच श्रीकृष्ण को गमगीन का कारण पूछा।

प्रभु ने अपने दुःख के आवेग को वश करके स्वस्थ रहने का प्रयत्न किया और उद्धव का स्वागत किया।
प्रेम प्रदर्शन की अपेक्षा नहीं रखता। वह तो ह्रदय में ही समाये रहना चाहता है।
श्रीकृष्ण-उद्धव,मथुरा में मेरा दुःख पूछने वाले एक तुम ही निकले। मै तुम्हे क्या बताऊँ?
मै जब गोकुल में था तब मेरी माँ मेरे पीछे-पीछे घूमती और देखती कि मुझे कोई बात का दुःख न रहे।
मेरे अनेक गुनाओको माफ़ करके मुझे प्रेमसे मनाकर खिलाती।

उद्धव,तुम्हे और क्या कहु? मेरे शरीर के  माता-पिता तो देवकी-वसुदेव है किन्तु -
गोकुल में रहने वाले यशोदा-नन्दजी मेरे सच्चे माता-पिता है। उन्होंने प्रेम से मेरा लालन -पालन किया है।
मुझे यहाँ से दिखता है की मेरी माँ रो रही है,मेरे से बिछड़ने के बाद उसने अनाज नहीं खाया है। मथुरा का रास्ता देखकर रोती हुई मेरी  माँ मुझे याद आ रही है। मुझे उसका प्रेम याद आता है। वह बहुत भोली है।

उद्धव, मुझे मेरी प्यारी गायें याद आती है। मेरे ग्वाल मित्र याद आते है।
सभी ग्वाल मित्र मुझे अपने-अपने घरों से लायी हुई खाद्य-सामग्री खिलाते थे।
कोमल पत्तों की सेज बनाकर सुलाते थे और मेरी गायों की रखवाली भी करते थे।
मै अपने माता-पिता,मित्रों,सखियों को कैसे भूला दू?

उद्धव,जब मै कालियनाग के लिए यमुना में कूद पड़ा था तो सभी गायें रोने लगी थी और -
जब मै सकुशल बहार निकला तो आनंद से बावली हो गयी थी। उद्धव,वे गायें मुझे बार-बार याद आती है।
मुझे गोकुल की गोपियाँ याद आती है।

उद्धव वृन्दावन की प्रेम  भूमि छोड़कर मै यहाँ आया हूँ इसलिए मुझे यहाँ आनंद नहीं है।
यहाँ आप सभीने मुझे राजा बनाया,सब मुझे वंदन करते है,मान देते है पर प्रेमसे कोई मेरे साथ बात नहीं करता।
जो  आनंद गोकुल में था वह यहाँ नहीं है। मेरी माँ जैसा,बाबा जैसा,गोपियों जैसा,मित्रो जैसा प्रेम यहाँ कहाँ है?
उद्धव,यह कृष्ण तो प्रेम का भूखा है। मुझे कोई अपेक्षा या मान की नहीं पर प्रेम की भूख है।

उद्धव ज्ञानी तो है पर प्रेम लक्षणा भक्ति की महिमा से अज्ञान है।
उद्धव को ज्ञान का अभिमान है,इसलिए कृष्ण उपदेश देते है।
उद्धव कहते है- बचपन में गोपबालकों के साथ खेलते रहने की बात तो ठीक है किन्तु  -
अब तो आप मथुरा के राजा है और राजाको गोपबालकों के साथ खेलने का विचार शोभा नहीं देता।
आप व्रज को और सभी व्रजवासियों को भूला दो  तो मथुरा का ऐश्वर्य आनन्ददायी बन जायेगा।

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