Bhagvat-Rahasya-Hindi-भागवत रहस्य-433



ज्ञानाभिमानी उद्धवजी यह नहीं जानते कि वे किसे उपदेश दे रहे है।

प्रभु बोले -उद्धव तू मुझे व्रज को भूलने  का उपदेश दे रहा है पर मै क्या करू?
मै सब कुछ भूल सकता हूँ किन्तु व्रज को नहीं भूल सकता। शायद व्रजवासी भी मुझे याद करते होंगे।
प्रेम अन्योन्य होता है। हाँ,व्रज भूलने का एक उपाय है। यदि वे मुझे भूल जाए तो मै उन्हें भूल सकता हूँ।
उध्दव,तुम व्रज जाओ। वहाँ उनको वेदांत का उपदेश दो और उनसे कहो कि  वे मुझे भूला दे।

यदि वे मुझे भूला नहीं पायेंगे तो मै उन्हें भूला नहीं पाउँगा। संसार के सभी सुखों का त्याग करके
वे सब मेरे ही लिए जी रहे  है। मैंने वापस जाने का वादा किया था सो वे मेरी प्रतीक्षामें प्राण टिकाए रहे है।
तुम उनको उपदेश देकर निराकार ब्रह्म के उपासक बना दो। वैसा होने पर वे मुझे भूल जायेंगे और मै उनको।

भक्ति-हीन ज्ञान वाचाल होता है। भक्ति-युक्त ज्ञानी मौन रहकर अध्ययन करता है।
उद्धवजी के पास ज्ञान तो था किन्तु भक्ति नहीं थी।
वे कहने लगे-मुझे वहाँ भेजने के बदले प्रति सप्ताह एक-एक पत्र लिखकर  भेजते रहिए।
वे आपको पत्र लिखेंगे। इस तरह पत्र -व्यवहार से प्रत्यक्ष मिलन सा आनंद होगा।

प्रेमतत्व से उद्धवजी परिचित नही है।
उद्धव जानते नहीं है कि प्रेम सन्देश पत्रसे नहीं पर ह्रदय से जाता है।
पत्र में लिखा जाता है वह सब कुछ सच नहीं होता। पत्र में तो कई लोग लिखते है-
“हर घड़ी याद करने वाली” पर क्या हर घडी कोई याद करता है?
विचार और व्यवहार में अंतर होता है। सो पत्र में सब कुछ खुल कर सच्चा लिखा नहीं जा सकता।
उद्धवजी क्या जाने कि श्रीकृष्ण और गोपी एक ही है। ज्ञानी पुरुष भक्त ह्रदय की बाते नहीं जानते।
उद्धवजी प्रेम का रहस्य जानते ही नहीं थे।

श्रीकृष्ण -उद्धवजी,पत्र  लिखने का तो मैंने कई बार प्रयत्न किया किन्तु लिख नही पाया। लिखू तो क्या लिखू?
मै अपनी माँ को पत्र के टुकड़े से कैसे धीरज बँधाऊँ?
वह तो मुझे निहार केँ,गले लगाकर,खिला-पिलाकर,गोद  में बिठाकर ही संतोष प् सकती है।
मैंने कई बार पत्र लिखना चाहा किन्तु सोचकर रुक जाता कि -पत्र पढ़कर माँ याद करके अधिक दुःखी होगी।
एक तो वह इधर आता नहीं है और पत्र भेजकर दुःखी करता है।
वे पत्र में यशोदा शब्द लिखते ही रुक जाते।
आगे कुछ लिखने जाते कि आँखों में आँसू आ जाते। प्रेम की भाषा ही न्यारी है।

श्रीकृष्ण कहते है-उद्धव, सच्चा प्रेम तो ह्रदय ही ह्रदय को सुना सकता है ,पत्र द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता।
तुम वृंदावन जाकर गोपियों को ब्रह्मज्ञान का उपदेश देना,जिससे वे मुझे भूल जाये और ब्रह्म का चिंतन करे।
मेरे माता-पिताको भी सान्तवना देना। तुम वहाँ जाओगे तो उन्हें शान्ति मिलेगी।

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